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सिर को झुका सको ! अहंकार अपने से चला जायेगा।
दोनों सही हैं, क्योंकि दोनों घटनाएं एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । तुम सिक्के का सीधा हिस्सा घर ले आओ कि उलटा हिस्सा घर ले आओ, इससे क्या फर्क पड़ता है, सिक्का घर आ जाएगा ! दोनों ही एक सिक्के के पहलू हैं। पर कहीं से शुरू करना पड़ेगा। बैठकर सिर्फ गणित मत बिठाते रहना । 'गैरिक वस्त्र और माला, ध्यान और साक्षी - साधना में कहां तक सहयोगी हैं?
चाहो तो हर चीज सहयोगी है। चाहो तो छोटी-छोटी चीजों से रास्ता बना ले सकते हो ।
कहते हैं, राम ने जब पुल बनाया लंका को जोड़ने को, जब सागर सेतु बनाया तो छोटी-छोटी गिलहरियां रेत कण और कंकड़ ले आयीं। उनका भी हाथ हुआ। उन्होंने भी सेतु को बनने में सहायता दी। बड़ी-बड़ी चट्टानें लाने वाले लोग भी थे। छोटी-छोटी गिलहरियां भी थीं; जो उनसे बन सका, उन्होंने किया।
कपड़े के बदल लेने से बहुत आशा मत करना, क्योंकि कपड़े के बदल लेने से अगर सब बदलता होता तो बात बड़ी आसान हो जाती । माला के गले में डाल लेने से ही मत समझ लेना कि बहुत कुछ हो जायेगा, क्रांति घट जाएगी। इतनी सस्ती क्रांति नहीं है। लेकिन इससे यह भी मत सोच लेना कि यह गिलहरी का उपाय है, इससे क्या होगा ? राम ने गिलहरियों को भी धन्यवाद दिया।
ये छोटे-छोटे उपाय भी कारगर हैं । कारगर इस तरह हैं— अचानक तुम अपने गांव वापिस जाओगे गैरिक वस्त्रों में, सारा गांव चौंककर तुम्हें देखेगा। तुम उस गांव में फिर ठीक उसी तरह से न बैठ पाओगे जिस तरह से पहले बैठते थे। तुम उस गांव में उसी तरह से छिप न जाओगे जैसे पहले छिप जाते थे। तुम उस गांव में एक पृथकता लेकर आ गये। हर एक पूछेगा, क्या हुआ है ? हर एक तुम्हें याद दिलाएगा कि कुछ हुआ है। हर एक तुमसे प्रश्न करेगा। हर एक तुम्हारी स्मृति को जगायेगा । हर एक तुम्हें मौका देगा पुनः पुनः स्मरण का, साक्षी बनने का ।
. एक मित्र ने संन्यास लिया । संन्यास लेते वक्त वे रोने लगे । सरल व्यक्ति ! और कहा कि बस एक अड़चन है, मुझे शराब पीने की आदत है और आप जरूर कहेंगे कि छोड़ो। मैंने कहा, मैं किसी को कुछ छोड़ने को कहता ही नहीं । पीते हो— ध्यानपूर्वक पीयो !
उन्होंने कहा, क्या मतलब? संन्यासी होकर भी मैं शराब पीऊं ? 'तुम्हारी मर्जी! संन्यास मैंने दे दिया, अब तुम समझो।'
वे कोई महीने भर बाद आए। कहने लगे, आपने चालबाजी की। शराब - घर में खड़ा था, एक आदमी आकर मेरे पैर पड़ लिया। कहा, 'स्वामी जी कहां से आये ?' मैं भागा वहां से — मैंने कहा कि ये स्वामी जी और शराब - घर में !
वह आदमी कहने लगा, आपने चालबाजी की। अब शराब - घर की तरफ जाने में डरता हूं कि कोई पैर वगैरह छू ले या कोई नमस्कार वगैरह कर ले। आज पंद्रह दिन से नहीं गया हूं।
एक स्मृति बनी। एक याददाश्त जगी !
तुम इन गैरिक वस्त्रों में उसी भांति क्रोध न कर पाओगे जैसा कल तक करते रहे थे। कोई चीज चोट करेगी। कोई चीज कहेगी, अब तो छोड़ो ! अब ये गैरिक वस्त्रों में बड़ा बेहूदा लगता है।
मैं तुम्हारे लिए गैरिक वस्त्र देकर सिर्फ थोड़ी अड़चन पैदा कर रहा हूं, और कुछ भी नहीं । तु
कर्म, विचार, भाव- और साक्षी
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