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बुद्ध ने जिद्द की। उन्होंने कहा, तू वापिस जा और वही पानी ले आ। जब बुद्ध ने कहा तो आनंद इंकार भी न कर सका। फिर गया। झिझकते हुए गया कि वह पानी बिलकुल बेकार है। लेकिन वहां जा कर देखा कि तब तक तो पानी स्वच्छ हो गया। आना-जाना आनंद का दो मील, उस बीच धूल फिर बैठ गई, कीचड़ बह गया, पत्ते जा चुके, झरना तो ऐसा स्वच्छ, स्फटिक-मणि जैसा हो गया! वह बड़ा चकित हुआ! ..
तब उसे बुद्ध की जिद्द का अर्थ दिखाई पड़ा। वह पानी भर कर लाया, नाचता हुआ आया। उसने पानी बुद्ध के चरणों में रखा, सिर चरणों में झुकाया और उसने कहा कि मुझे ठीक-ठीक सूत्र दे दिया। यही मेरे चित्त की दशा है। आपने अच्छा किया मुझे वापिस भेजा। मैं रास्ते में सोचता जाता था कि अगर पानी शुद्ध न हुआ तो अब की बार उतर कर झरने में कीचड़-कर्कट को अलग करके किसी तरह भर लाऊंगा। अगर मैं उतर जाता तो फिर गंदा हो जाता। उतरने से ही तो गंदा हुआ था, बैलगाड़ियां निकल गई थीं। मैं किनारे पर ही रहा और पानी शांत हो गया! किसी ने शांत न किया और शांत हो गया! __ 'आश्चर्य! अनंत समुद्ररूप मुझमें जीवरूप तरंगें अपने स्वभाव से उठती हैं, परस्पर लड़ती हैं, खेलती हैं, और लय होती हैं।'
स्वभावतः प्रविशन्ति!
अपने स्वभाव से ही सब बनता, मिटता, खोता रहता है। तुम दूर साक्षी हो जाओ! तुम खड़े देखते रहो।
" सुना है मैंने, एक गांव में एक पौराणिक कथा कह रहा था। उसने गांव के लोगों को समझाया कि पाप से डरो, पाप से बचो, पाप से लड़ो! जैसा कि सभी तथाकथित धार्मिक लोग कहते हैं। एक पागल-सा संन्यासी वहां बैठा था, वह उठ कर खड़ा हो गया। उसने कहा, 'चुप! बकवास बंद! पाप में डूब मरो!' और वह तो इतना कह कर चल पड़ा। वह पौराणिक भी सकते में आ गया, लेकिन गांव के लोगों ने कहा कि तुम फिक्र न करो, कथा जारी रखो। यह आदमी पागल है! इसे हम जानते हैं। इसकी बात का कुछ खयाल मत करो।
लेकिन पौराणिक को कछ चोट लग गयीः उस आदमी ने कहा. पाप में डब मरो। उसने तो कथा बंद कर दी। इस आदमी में कुछ खूबी है। और इस आदमी में कुछ लहर भी उसे मालूम पड़ी। इस आदमी में एक चमक थी, एक दीप्ति थी। यह आदमी पागल नहीं है। यह आदमी परमहंस हो सकता है।
वह पौराणिक तो कथा-पुराण वहीं छोड़ कर भागा इस पागल के पीछे। कोई दो मील जा कर जंगल में उसे पकड़ लिया। वह एक वृक्ष के नीचे बैठा था। वह पौराणिक कहने लगा, महाराज! अब व्याख्या और कर दें। सूत्र तो दे दिया कि पाप में डूब मरो; अब इसकी व्याख्या और कर दें, इसका भाष्य और कर दें। मुझे मुश्किल में डाल दिया। ___ तो उस पागल संन्यासी ने कहा कि सुन, एक आदमी एक गुरु के पास गया और कहने लगा, मुझे शांत होना है। तो गुरु ने उसे एक मंत्र दे दिया और कहा कि तीन दिन में तू शांत हो जाएगा। मंत्र का रोज पांच बार पाठ कर लेना, लेकिन ध्यान रखना जब पाठ करे, बंदर का स्मरण न आए।
तीन दिन में ठीक होने को कहा था, तीन साल गुजर गए। वह आदमी मरा जा रहा है, लड़ा जा
जब जागो तभी सवेरा
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