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इतना त्याग करो और समाधि घटती हो तो समाधि गणित के भीतर आ जायेगी, खाते-बही में आ जायेगी, महान न रह जायेगी। अकारण घटती है।
भक्त इसीलिए कहते हैं : प्रसाद-रूप घटती है। तुम्हारे घटाये नहीं घटती । बरसती है तुम पर—अनायास, भेंट-रूप, प्रसाद-रूप !
जाते हों, तब तो तुम व्यर्थ ही श्रम करते हो, तब तो तुम व्यर्थ ही अनुष्ठान करते हो । अनुष्ठान
फिर श्रम और चेष्टा, जो हम करते हैं, उसका क्या परिणाम ? अगर अष्टावक्र तुम्हें समझ में आ की कोई भी जरूरत नहीं; समझ पर्याप्त है। इतना समझ लेना कि परमात्मा तो है ही, और उसकी खोज छोड़ देना। इतना समझ लेना कि जो हम हैं वह मूल से जुड़ा ही है इसलिए जोड़ने की चेष्टा और दौड़-धूप छोड़ देनी है— और मिलन घट जायेगा । मिलन घट जायेगा – मिलने के प्रयास से नहीं; मिलने के प्रयास को छोड़ देने से मिलने के प्रयास से तो दूरी बढ़ रही है – जितनी तुम मिलन की आकांक्षा करते हो, उतना ही भेद बढ़ता जाता है । जितना तुम खोजने निकलते हो, उतने ही खोते चले जाते हो; क्योंकि जिसे तुम खोजने निकले हो, उसे खोजना ही नहीं है। जागकर देखना है; वह मौजूद है, वह द्वार पर खड़ा है; वह मंदिर के भीतर, तुम्हारे भीतर विराजमान है। एक क्षण को उसने तुम्हें छोड़ा नहीं, एक क्षण को जुदा हुआ नहीं। जो जुदा नहीं हुआ, जिससे कभी विदाई नहीं हुई, जिससे विदाई हो ही नहीं सकती, उसे तुम खोज - खोजकर खो रहे हो ।
तो तुम्हारे अनुष्ठानों का एक ही परिणाम हो सकता है कि तुम थक जाओ, कि तुम्हारी सारी चेष्टा एक दिन ऐसी जगह आ जाये कि चेष्टा कर-करके ही तुम ऊब जाओ; तुम उस ऊब के क्षण में चेष्टा छोड़ दो, और तत्क्षण तुम्हें दिखाई पड़े: अरे ! मैं भी कैसा पागल था !
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कल मैं किसी की जीवनकथा पढ़ रहा था। उस व्यक्ति ने लिखा है कि वह एक अनजान नगर में यात्रा पर गया हुआ था और एक अनजान नगर में खो गया। वहां की भाषा उसे समझ में नहीं आती। तो वह बड़ा घबड़ा गया। और उस घबड़ाहट में उसे अपने होटल का नाम भी भूल गया, फोन नंबर भी भूल गया। तब तो उसकी घबड़ाहट और बढ़ गई कि अब मैं पूछूंगा कैसे? तो वह बड़ी उत्सुकता से देख रहा है रास्ते पर चलते-चलते कि कोई आदमी दिखाई पड़ जाये जो मेरी भाषा समझता हो । पूरब का कोई देश, सुदूर पूर्व का, और यह अमरीकन ! यह देख रहा है कि कोई सफेद चमड़ी का आदमी दिख जाये, जो मेरी भाषा समझता हो, या किसी दुकान पर अंग्रेजी में नाम-पट्ट दिख जाये, तो मैं वहां जाकर पूछ लूं। वह इतनी आतुरता से देखता चल रहा है, और पसीने-पसीने है कि उसे सुनाई ही न पड़ा कि उसके पीछे पुलिस की एक गाड़ी लगी हुई है और बार-बार हार्न बजा रही है। क्योंकि उस पुलिस की गाड़ी को भी शक हो गया है कि यह आदमी भटक गया है। दो मिनिट के बाद उसे हार्न सुनाई पड़ा। चौंक कर वह खड़ा हो गया, पुलिस उतरी और उसने कहा, तुम होश में हो कि बेहोश हो? हम दो मिनिट से हार्न बजा रहे हैं, हमें शक हो गया है कि तुम भटक गये हो, खो गए हो, बैठो गाड़ी में !
उसने कहा, यह भी खूब रही ! मैं खोज रहा था कि कोई बताने वाला मिल जाये, बताने वाले पीछे लगे थे। मगर मेरी खोज में मैं ऐसा तल्लीन था कि पीछे से कोई हार्न बजा रहा है, यह मुझे सुनाई ही न पड़ा। पीछे मैंने लौटकर ही न देखा ।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-1