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आज्ञा का उल्लंघन करता है।'
'नहीं' जल्दी आती है; जबान पर रखी है।
तुम जरा गौर करना। सौ में नब्बे मौकों पर जहां 'नहीं' कहने की कोई भी जरूरत न थी, वहां भी तुम 'नहीं' कहते हो। 'नहीं' कहने का मौका तुम चूकते नहीं। 'नहीं' कहने का मौका मिले तो झपटकर लेते हो। 'हां' कहने में बड़ी मजबूरी लगती है। 'हां' कहने में बड़ी दयनीयता मालूम होती है। 'हां' कहने का मतलब होता है : तुम्हारा कोई बल नहीं।
इसलिए जो बहुत अहंकारी हैं वे नास्तिक हो जाते हैं। नास्तिक का मतलब, उन्होंने आखिरी 'नहीं' कह दी। उन्होंने कह दिया, ईश्वर भी नहीं; और की तो बात छोड़ो। ___ नास्तिक का अर्थ है कि उसने आखिरी, अल्टीमेट, परम इनकार कर दिया। आस्तिक का अर्थ है : उसने परम स्वीकार कर लिया, उसने 'हां' कह दिया, ईश्वर है। ईश्वर को 'हां' कहने का मतलब है : मैं न रहा। ईश्वर को 'ना' कहने का मतलब है, बस मैं ही रहा : अब मेरे ऊपर कोई भी नहीं; मेरे पार कोई भी नहीं; मेरी सीमा बांधने वाला कोई भी नहीं।
हमारा कर्तव्य हमारे अहंकार को भरता है। इसलिए अष्टावक्र के इस सूत्र को खयाल करनाः 'मैं कर्ता हूं- अहं कर्ता इति—ऐसे अहंकार-रूपी अत्यंत काले सर्प से दंशित हुआ तू व्यर्थ ही पीड़ित
और परेशान हो रहा है।' ___यह पीड़ा कोई बाहर से नहीं आती। यह दुख जो हम झेलते हैं, अपना निर्मित किया हुआ है। . जितना बड़ा अहंकार उतनी पीड़ा होगी। अहंकार घाव है। जरा-सी हवा का झोंका भी दर्द दे जाता है।
निरहंकारी व्यक्ति को दुखी करना असंभव है। अहंकारी व्यक्ति को सखी करना असंभव है। अहंकारी व्यक्ति ने तय ही कर लिया है कि अब सुखी नहीं होना है। क्योंकि सुख आता है 'हां'-भाव से, स्वीकार-भाव से। सुख आता है यह बात जानने से कि मैं क्या हूं? एक बूंद हूं सागर में! सागर की एक बूंद हूं! सागर ही है, मेरा होना क्या है?
जिस व्यक्ति को अपने न होने की प्रतीति सघन होने लगती है, उतने ही सुख के अंबार उस पर बरसने लगते हैं। जो मिटा, वह भर दिया जाता है। जिसने अकड़ दिखायी, वह मिट जाता है।
'...मैं कर्ता नहीं हूं, ऐसे विश्वास-रूपी अमृत को पी कर तू सुखी हो।' 'मैं कर्ता नहीं हूं', ऐसे भाव को अष्टावक्र अमृत कहते हैं। 'अहं न कर्ता इति'- यही अमृत है।
इसका एक अर्थ और भी समझ लेना चाहिए। सिर्फ अहंकार मरता है, तुम कभी नहीं मरते। इसलिए अहंकार मृत्यु है, विष है। जिस दिन तुमने जान लिया कि अहंकार है ही नहीं, बस मेरे भीतर परमात्मा ही है, उसका ही एक फैलाव, उसकी ही एक किरण, उसकी ही एक बूंद-फिर तुम्हारी कोई मृत्यु नहीं; फिर तुम अमृत हो।
परमात्मा के साथ तुम अमृत हो; अपने साथ तुम मरणधर्मा हो। अपने साथ तुम अकेले हो, संसार के विपरीत हो, अस्तित्व के विपरीत हो-तुम असंभव युद्ध में लगे हो, जिसमें हार सुनिश्चित है। परमात्मा के साथ सब तुम्हारे साथ है : जिसमें हार असंभव, जीत सुनिश्चित है। सबको साथ लेकर चल पड़ो। जहां सहयोग से घट सकता हो, वहां संघर्ष क्यों करते हो? जहां झुक कर मिल सकता हो, वहां लड़ कर लेने की चेष्टा क्यों करते हो? जहां सरलता से, विनम्रता से मिल जाता हो,
| जैसी मति वैसी गति
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