Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिण टीका अ० ५ शेलकराज चरित्र निरूपणम्
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स्वीकृरूतेस्म । ततस्तदनन्तर स मण्डूको राना शैलक वन्दते नमस्यति, वदिला नत्वा च यस्यादिश प्रादुर्भूतः आगत., तामेव दिन प्रतिगत स्वप्रासाद समाप्तः ॥ २९ ॥
मूलम् - तएण से सेलए कल्ल जाव जलते सभंडमत्तोवगरणमायाए पन्थयपामोक्खेहि पचहि अणगारसहि सद्धि सेलगपुरमणुपविसइ अणु पविसित्ता जेणेव मडुयस्स जाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता फासुय पीढ जाव विहरइ । तएण से मंडुए विच्छिए सदावेइ, सद्दावित्ता एव वयासीतुभेण देवाणुपिया सेलयस्स फासुएसणिज्जेणं जाव तेगिच्छं आउद्देह, तरणं ते तेगिच्छया मडुएणं रन्ना एव बुत्ता हट्ठट्ठा समाणा सेलयस्स अहापवतेहि ओसहभेसज्जभत्तपाणेहि तेगिच्छ आउट्ठेति, मज्जपाणय च से उवदिसति तएण तस्स सेलयस्स अहापवतेहि जाब मज्जमाणेण रोगाय के उवसंते होत्था हट्टे मल्लसरीरे जाते ववगयरोगायके, तएण से सेलए तंसि रोगास उवसंतमि समाणसि तसि विपुलसि असण० पाण खाइमसाइम, सज्जपाणए य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झो
कह कर उस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया । (तएण से मडुए सेलय वदह नमसइ वदित्ता नमसित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूत तामेव दिसि पडिगए) इसके बाद वे मडूक राजा शैलक अनगार को वदना नमस्कार कर जिस दिशा से प्रकट हुए थे- आये थे उसी दिशा तरफ चले गये । अर्थात् वा मे अपने राज महल में वापिस आ गये || सूत्र २९ ॥
વિનતિ સાભળીને સૈલક અનગારે તેમની વિનતિને “ તહુત્તિ” આમ કહીને स्वीजरी सीधी (तएण से मडुत सेलय वदइ नमसइ वदित्ता नमसित्ता जामेव दिसिं पारब्भूए तामेत्र दिपिडिगए) त्यार माह भई शब्द शैव अनगारने વદન અને નમસ્કાર કરીને નથી આવ્યા હતા ત્યા જતા ચ્હા એટલે કે તે પેાતાના રાજમવનમા ગયા !સૂત્ર ૨૯
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