Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षणो दो अ०८ दिशाकुमारी प्रभृतिभि महोत्सवकरणम् २९१ देवैः पूरित', तद् भातु खलु इय नाम्ना मल्लिः मालायै हित, तर साधु वा माल्य कुसुम तद्गताभिलापरूपदोहदपूर्वकमेवस्ना दारिकाया जन्मजात तस्मा दया नाम 'मल्ली' इतिकृतम् । अस्याः स्त्रीत्वेऽपि जिनस्तीर्थकरोऽर्हदिति शब्दाना बाहुल्येन पुस्त्वे प्रवृत्तिदर्शनात्पुलिङ्गशब्देन व्यवहारः । यथा महापलो नाम = में उनका नाम मल्ली रखा गया-क्यो कि राजाने यह विचारा कि जब ये गर्भ में थी तो इनकी माताको पुष्पोंकी माल्य की शय्या के विषय में दोहला उत्पन्न हुआ था और उस दोहले की पूर्ति देवो ने की थी अतः यह पुत्री नाम से मल्ली रहो- इसी अभिप्राय से राजा ने उसका नाम मल्लि रसा ।
" मालायै हित तत्र साधु वा माल्य " इस व्युत्पत्ति के अनुसार माल्य शब्द का अर्थ कुसुम होता है । सो जन ये माता के गर्भ में थी तब माता को उस माल्य के विषय में अभिलाप रूप दोहला उत्पन्न हुआ था जिस की पूर्ति देवो ने की थी अत उस दोहद पूर्वक इस लड़की का जन्म हुआ- इस कारण राजा ने उसका नाम मल्लि रख दिया । यद्यपि यह स्त्रीरूप में थी - तौ भी "जिनः तीर्थकर अर्हत इत्यादि शब्दों की बहुलता से पुल्लिङ्ग में प्रवृत्त देखी जाती है-इसलिये यह इनका पुल्लिङ्ग शब्द से व्यवहार तीर्थ कर की अपेक्षा किया गया है | ( जहा महावले नाम जाव पडिवड्डिया " सा वह भगवती दिय लोध चुना अणोवम सिरीया दासी दास परिवुडा परिकिन्ना पीढमदेर्हि,,
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પૂર્તિ દેવાએ કરી હતી એવી જ રાજએ તે પુત્રીનુ નામ મવિ પાડયુ હતુ " मालायै हित तन साधुवा माल्य આ વ્યુત્પત્તિ મુજમ માલ્ય શબ્દના અર્થ કુસુમ ( પુષ્પ ) થાય છે જ્યારે મલિ માતાના ગર્ભમા હતા ત્યારે તેમને માય ની અભિલાષા રૂપ દોષન ઉત્પન્ન થયુ હતુ તે દાદની પૂર્તિ દેએ કરી હતી એથી માલ્યના દોહદથી જન્મેલી તે પુત્રીનુ નામ रालो भदिल थाड्यु ले या स्त्री ३ये इती छता से " जिन तीर्थकर અર્ વગેરે શબ્દો ના ખાફુલ્યથી તે પુલિંગથી જ સમાધિત કરવામા આવે છે . એટલા માટે અહી જે પુલિંગ શબ્દથી વ્યવહાર છે તે તેમની તીર્થંકરની અપેક્ષાથી જ
કરવામા આવે
( जहा महावले नाम जाव पडिवड्डिया 'सा चद्धती भगवती दियलोय चुता अणोत्रम सिरीया दासीदामपरिव़डा परिकिन्ना पोढमद्देहिं " १ " )
ભગવતી સૂત્રના મહાખવના વર્ણનની જેમ જ મલ્લિના વર્ણન વિષેષણુ