Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1070
________________ - - - ७६० ताधर्मकथा सामित्तए ताहे सता तता जाव पडिगया । तएण नदे तेहि सोलसहि रोगायंकेहि अभिभूए समाणे णदा पोखरणीए मुच्छीए गिद्धे गढिए अज्जोववणे तिरिक्खजोणिएहिं निवद्वाउए बद्धपएसिए अदृदुहवसट्टे कालमासेकाल किच्चा नदाए पोखरिणीए ददरीए कुच्छिसि ददरत्ताए उववन्ने सू०६॥ टीका-'तपण तस्म' इत्यादि । ततस्तदनन्तर खलु नन्दस्य मणिकारश्रेष्ठिनः, अन्यदा कदाचित्-प्रदरतरणातगौरवजनितकर्मादय। शरीरे पोडश रोगाताङ्का. तत्र ोगा. स्वल्पकालस्थायिनो ज्वरादय , आतङ्काः चिरस्थायिनः कुष्टादय., मादुर्भूताः, तद् यथा सासे १ कासे २ जरे ३ दाहे ४ कुच्छिमूले ५ भगदरे ६। अस्सिा ७ अजीरए ८ दिद्विमुद्र ९-१० मुले अरोभए ११ ॥ १॥ अच्छिवेयणा १२ रनवेयणा १३ कडू १४ दउदरे १५ कोढे १६ १॥ (१) श्वास -ऊ वैश्वास', (२ कास = लेप्मविकार', (३) ज्यास्ताप , (४) 'तए तस्स नदस्स' इत्यादि। टीकार्थ-(तएण ) इसके बाद (तस्स नदस्स मणियारसेहिस्स अन्नया कयाई सरीरगसि सोलसोगायका पाउन्भूया तजहा- उस मणिकार श्रेष्ठी के शरीर में किसी एक समय ये प्रबलतर शात गौरव जनित कर्म के उदय से १६ रोग और आतङ्क प्रकट हुए-स्वरप कालतक जो बिमारी शरीर में रहती है-जैसे ज्वर आदि-वे रोग, और जो बीमारी शरीर में चिरस्थायी होकर रहती है जैसे कुष्टादि-वे आतक कहलाते है। वे सोलह ये हैं-१ श्वास -उर्ध्वश्वास, २ कास-खासी, ३ ज्वर-ताप, ४ दाह-दाहज्वर, ५ कुक्षि 'तएण तरस न दस्स ' इ यादि सार्थ-(तएण)त्यार५७ (तस्स नस्स मणियार से द्विस्स अन्नया कयाई सरी रगसि सोलस रोगायका पाउभया-त जहा ते भर २ श्रेटिना शरीर मे : વખતે પ્રબળતરશાત વજનિત કર્મના ઉદયથી ૧૬રોગો અને આતકે પ્રગટયા થોડા વખત સુધી શરીરમા જે માદગી રહે છે જેમ કે તાવ વગેરે તે રોગ અને જે મ દગી શરીરમાં કાયમ માટે રહે છે જેમકે કેટ વગેરે તે આતક કહેવાય છે તે सोना नाम मा प्रभारी छ-(१)यास-64 वास,(२)A-SURA 270४५२

Loading...

Page Navigation
1 ... 1068 1069 1070 1071 1072 1073 1074 1075 1076 1077 1078 1079 1080 1081 1082 1083 1084 1085 1086 1087 1088 1089 1090 1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097 1098 1099 1100 1101 1102 1103 1104 1105 1106 1107 1108 1109 1110 1111 1112 1113 1114 1115 1116 1117 1118 1119 1120