Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1087
________________ अनगारधर्मामृतषिणी टीका अ०६३ नन्दमणिकारभवनिरूपणम् ततः तलु तस्य द१रस्य तदभीक्ष्णपोन. पुन्येन, बहुजनस्यान्तिके एतमर्थ श्रुत्वा निशम्य, अयमेतद्रूप वक्ष्यमाणम्वरूपः आध्यात्मिक आत्मगतोविचारः, योपन्मनोगतः सकल्प' समुदपयत । किं स्वरूप ? इत्याह-' से कहिंमन्ने' इत्यादि । ननूह मन्ये-कुनापि मया अयमेतद्रूप शब्द. 'णिसतपुव्वे ' निशान्तपूर्व श्रुतपूर्व पूर्वकाले श्रुतआसीत् , इति कृत्या शुभेन परिणामेन-विशुद्धा-यवसायेन यावत्-जातिस्मरण समुत्पन्नम् , स दर्दुरः 'पूचनाइ 'पूर्वजन्मवृत्तान्त सम्यक् समागच्छति = स्मरति । तत खलु तस्य ददुंरस्यायमेतद्रूप वक्ष्यमाणस्वरूप. 'अज्झथिए' आध्यात्मिक यावन्मनोगत सकल्प = स्मरणरूप' 'समुप्प ज्जिया' समुदपद्यत-सजात', तद् यथा-एव खलु अह इहैव राजगृहे नगरे नन्दो जन्म और जीवन दोनो ही सफल है । उम ने अपने मनुष्य जन्म और जीवन का फल अच्छी तरह पा लिया है । इस प्रकार अनेक जनो के मुख से पार २ अपनी प्रशसा सूचक शब्दो को सुनकर और उन्हें हृदय में अवधृत कर उस दर्दुर को यह इस प्रकार का आध्योत्मिक विचार यावत् मनोगत सकल्प उत्पन्न हुआ-(से कहिं मन्ने मैए हमें याख्वे सद्दे णिसत पुव्वे त्ति कहद सुभेण परिणामेण जाव जाइसरणे संमुप्पन्ने, पुव्यजाड सम्म समागच्छइ तरण तस्स दद्दुरस्स इमेयाख्वे अज्झथिए ५) में मानता हूँ कि मैंने इस प्रकार का यह शब्द पहिले सुना है-इस प्रकार के विचार से उसे विशुद्ध अभ्यवसाय के वश से जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। इससे उसने अपने पूर्व जन्म के वृत्तान्त को अच्छी तरह जान लिया। इस के बाद उस दर्दूर को इस प्रकार-वक्ष्यमाण रूप सकल्प उत्पन्न हुआ। ( एव खलु अर इहेव ખને સફળ થઈ ગયા છે તેણે પિતાના મનુષ્ય જન્મ અને જીવનનુ ફળ સારી પેઠે મેળવી લીધુ છે આ રીતે ઘણા માણસોના મુખેથી વાર વાર પિતાના વખાણ સાંભળીને અને હૃદયમાં અવધૂત કરીને દેડકાને આ પ્રમાણેને આધ્યાभि: विया२ यावत मनोगत म४८५ मध्ये 3-(से कहिं मन्ने मए इमेयारूवे सद्दे णिस तपुवे तिकटु सुभेण परिणामेण जाव जाइसरणे समुप्पन्ने, पुचजाइ सम्म समागन्छइ तरण तस्स दद्दुरस्स इमेयारूवे अज्झथिए ) भने એમ થાય છે કે આ રો પહેલા મે સાભ છે આ જાતના વિચારોથી તેને વિશુદ્ધ અધ્યવસાયને લીધે જાતિસ્મરણ જ્ઞાન ઉત્પન્ન થઈ ગયુ એથી તેણે પિતાના પૂર્વ જન્મની બધી વિગત જાણી લીધી ત્યારબાદ તે ડકાને આ રીતે વક્ષ્યમાં રૂપથી આધ્યાત્મિક ચાવત્ મનોગત સમરણરૂપ સક૯૫ ઉત્પન્ન થયે કે (एवं खलु अह इहेव रायगिहे नैयरे पदे णाम मणियारे अइढे जाव अपरि

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