Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1110
________________ বাঘমকথা चपलया-शरीरचापल्येन युक्तया, चण्डया-तीया, अतएर शीध्रया, उद्यतयाअशेष शरीरावयनकम्पपत्या, जयिन्या अन्यदर्दु रंगतिजेन्या, छकया-अपायपरिहारे निपुणया, दर्दु रंगत्या-मण्डरगत्या "वीश्वयमाणे' व्यतिव्रजन २-महा वेगेन गच्छन् २, योर ममान्तिक तगैव प्राधारयद् गमनाय-गन्तु प्रवृत्त । अस्मिन्नेव समये उद्यानरक्षरमुखान्ममागमन श्रुत्वा श्रेणिको राजा भभसारः = भमसारापरनामा, स्नातः कृतकौतुस्मगलपायश्चितः सर्वालकारविभूषितः, जो उत्कर्ष होता है वह उस उत्कर्ष से युक्त थी । उस मेंढक के मन में पड़ी भारी उत्सुकता थी-सो उस उत्सुकता से वह गति भरी हुई थी-इस कारण वह उस की गति त्वरित थी। शरीर की चपरता से युक्त होने के कारण, तीव्र होने के कारण, शीघ्रता से युक्त होने के कारण, समस्त शारीरिक अवयवों के कपन से युक्त होने के कारण अन्य साधारण दर्दुरों की गति की अपेक्षा विशिष्ट होने के कारण, और अपायों को बचा २ कर चलने के कारण वह गति क्रमशः वपल चण्ड, शोघ्र उधुन, जयनी, और छेक इन विशेषणों वाली थी । इम चण सेणिए राया भभसारे पहाए कयकोउयमगलपायरिउत्ते सन्बा. लकारविभूसिए, हथि खधवरगए सकोरटमल्लदामेण छत्तेण धरिज्ज माणेण सेयवरचामरारिं उधुव्वमाणाहिं ह्यगयरहमत्या भडचडगरकलियाए चाउरगिणीए सेणाए सद्धि सपडिबुडे मम पायवदए हव्वमागच्छइ ) इसी समय उद्यान रक्षक के मुग्व से मेरा आगमन सुनकर" भभसार" इस अपर नाम वाले श्रेणिक राजा मेरी वदना હતી તે દેડકાના મનમાં ભારે ઉત્સુક્તા હતી તેની ગતિમા ઉત્સુક્તાને લીધે જ વરા આવી ગઈ હતી શારીરની ચપળતાથી યુક્ત લેવા બદલ, તીવ્ર હેવા બદલ, શીદતા યુક્ત હવા બદલ, શરીરના બધા અવયવોના પનથી યુક્ત હેવા બદલ, બીજા સાધારણ દેડકાઓ ગતિ કરતા વિશિષ્ટતા યુક્ત લેવા બદલ અને અપાયે (આફતો) થી સાવધ થઈને ચાલવા બદલ તે ગતિ કમશ ચપળ, ચડ, શીવ્ર, ઉધુત, જયની અને છે. આ વિશેષણોવાળી હતી (इम चण सेणिएराया भभसारे पहाए कयकोउयभागलपायच्छित्ते सव्वा लकारविभूसिए, हत्यिसधयरगए सकोरटमल्लदाणे छतेण धरिजमाणेण सेयवर चामराहिं उधुव्यमाणाहि हयगयरहमया भड़चडगरकालियाए चाउर गिणीय सेणाए सद्धिं संपडिवुडे मम पायदए हव्यमागच्छइ) a qw Gधान २क्षना મુખથી મારા આગમનની વાત સાંભળીને “ભ ભસાર ” એ બીજા નામવાળા

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