Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1109
________________ - अनगारधर्मामृतमपिंगी टी० अ० १३ नन्दमणिकारभवनिरूपणम ७८३ हस्तिस्कन्धवरगताम्गजोपरिसमास्ट', सकोरण्टमाल्यदाम्ना-कोरण्टकुसुममालया, छोण घ्रियमाणेन स्वभृत्यहस्तधृतेन, श्वेतवरचामरैरुद्धूयमानः स्वभृत्यैर्वी जिते , हयगजरथमहाभटचटकरमलितया अश्वगजरथमहाभटाना चटकर समूहस्तेन कलितया-युक्तया, चतुरङ्गिण्या सेनया साध सपरितो मम पादवादको हव्य-शीघ्रम् , आगच्छति, तत' खलु स दर्दुर श्रेणिकस्य राज्ञ एकेन 'आसरिसोरएण' अश्वकिशोरकेन वामपादेन ' अकते समाणे ' आक्रान्त' अभिभूत. देहोपरिपादनिपाताऽऽघात प्राप्तः सन् 'अतनिग्याइए' अन्त्रनिर्घातित =अन्त्रस्य ' ऑत' करने के लिये तैयार हुआ स्नान से निपट कर और कौतुक, मगल एव प्रायश्चित विधि सम्मत कर गज पर चढे ए जरदी २ आ रहे थे। उस समय वे समस्त अलकारों से विभूषित थे। उन के ऊपर कोरट पुष्पों की माला से शोभित छत्र छत्रधारी ने लगा रग्वा या । चमर ढोरने वाले भृत्य जन उन पर शुभ्र उत्तम चमर ढोल रहे थे, हय, गज, रथ, एव महाभटो के समूह से युक्त चतुरगिणी सेना से वे गिरे हुए थे । (तएण से ददुरे सेणियस्स रपणो ण्गेण आस किमोरएण वाम पाएण अक्कते ममाणे अत निग्गाइएकए यावि होत्या तण्ण से दर्दुरे अत्थामे अयले अकीरिए अपुरिसकारपरक्कमे अधोरणिज्ज मित्ति कटु एगतमवक्कमह, अवक्कमित्ता करयलपरिग्गयि मत्थर अजलि कट्ट एव वयोसि ) फुदक २ अपनी चाल से चलता-हुआ वह मेढक श्रेणिक राजा के किसी एक घोडे के सच्चे के वाम पैर से आक्रान्त हो गया-अर्थात् उस का वाम चरण उस के ऊपर पड गया। सो उसी શ્રેણિક રાજા અને વદન કરવા માટે તૈયાર થયા તેઓ સ્નાનથી પવારાને કૌતુક, મગળ અને પ્રાયશ્ચિત્ત વિધિ પૂરી કરી અને હાથી ઉપર સવાર થઈને ઝડપથી આવી રહ્યા હતા તે વખતે તેઓ બધી જાતના અવકારોથી વિભૂષિત હતા તેમના ઉપર કેરટ પુષ્પોની માળાથી શોભતુ છત્ર છત્રધારીઓએ તાલ હતુ અમર ઢળનાર નોકર તેમના ઉપર શુભ્ર ઉત્તમ ચમરે હેળી રહ્યા હતા હય (ઘેડા ) ગજ, રથ અને મહાભટોન સ હથી યુક્ત ચતુર ગિણી એનાથી तेसो वारणायेगा ता (तएण से ददुरे सेणियस्स रण्णो एगेण आसकिमो रएण वामपाएण अफ ते समाणे अतनिग्धाइएक याविहोत्या तरुण से दद्दुरे अत्थामे अगले अकीरिश अपुरिसकारपरक्मे आधारणिजमित्ति कटु एगठमवकमह, अवकामित्ता कारगरपरिगहिय मत्थए अजलि कटु एव वयोसी) કુદકા મારતે તે દેડકો બણિક રાજાના કેઈ એ ઘેડાના ના ડાબા પગથી ટકાત થઈ ગયો એટલે કે તેને ડાબો પગ તેના ઉપર પડી ગયે તેથી

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