Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मातsame ___ तदेव खलु हे नितशत्रो । मिथिलायां नगयों कुम्मकस्स गो दरिता पुगी, प्रभावत्या आत्मना-अनजाता मरली नाम इति, रूपेण-गन्दगत्या च यौवनेन च यावत् नो खलु या कापि देवकन्या वा ताटगी विद्यते, यारशी मल्ली। मल्ल्या विदेहराजपरकन्यायाच्छिन्नस्यापि पादा प्ठस्याय तवानरोध शतसासतमामपि कला लक्षाशमपि नाईति ' उतिकृत्वा प्रत्युत्या, सा चोक्षा परित्राधिका यस्या दिश प्रादुर्भूता, तामे दिश मतिगना । ततः ख स जितशत्रु पस्त्रिा भी नही है । (त एव खलु जियसत मिहिलाए नयरी कुभगस्स घृया पभावतीए अत्तया मल्ली नामति-स्वेण य जोवणेण जाव को खलु अण्णा काई देवकन्ना वा जारिमिया मल्ली) इसलिये हे जितशत्रो। सुनो- मिथिला नगरी में कुभक राजा की पुत्री जो प्रभावती की कुक्षि से उत्पन्न हुई है मल्ली कुमारी है । वह रूप और यौवन से इतनी अधि क सुन्दरी है कि उस के समक्ष ऐसी कोई देव कन्या आदि कोई भी कन्या सुन्दरी नहीं है-(महीए विदेहरायवरकन्नाए छिण्णस्स वि पायगुट्ठस्म इमे तवारोहे सयसहस्सतमपि कल न अग्धह, त्ति कटूड जामेव दिस पाउन्भृग्रा तामेव दिस पडिगया तएण से जियसत्तू परि च्वाइया जणियहासे दृय सदावेइ, सहावित्तो जाव पहारेत्थ गमणोए) उस विदेह राज की उत्तम कन्या मल्ली कुमारी के कटे हुए पादांगुष्ठ के एक लाग्व चे अश बराबर २ भी यह आपका अवरोध अन्तपुर नहीं है। __इस प्रकार कहकर वह चोक्षा परिव्राजिका जिम दिशा से आई ( त एव खलु जियसत्तू मिहिलाए नयरीए कुभगस्स धूया पभावतीए अत्तया मल्ली नामति रूवेण य जोयणेण जावनो खलु अण्णा काई देवकन्ना वा जारिसिया मल्ली) એટલા માટે હે જીતશત્રે ! સાભળે, મિથિલા નગરીમાં પ્રભાવતીના ગર્ભથી જન્મેલી કુભક રાજાની પુત્રી મલીકુમારી પિતાના રૂપ અને યૌવનથી એટલી બધી સુ કરી છે કે તેની સામે તે દેવકન્યા પણ કઈ જ નથી
(मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए छिण्णस्स वि पायगुहस्स इमे तोरोहे सय सहस्सतम पि कल न अग्धइ, त्ति कटु जामेव दिस पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया तएण से जियसत्तू । परिवाइया जणियहासे दूय सद्दावेद सावित्ता जाव पहारेत्थ गमणाए)
વિદેહે રાજાની ઉત્તમ કન્યા મ લીકુમારીના કપાએલા અ ગૂઠાના એક લાખમાં ભાગ બરાબર પણ આ તમારો અવરોધજન (રણવાસ) નથી
આ પ્રમાણે કહીને ચક્ષા પરિવ્રાજકા જે દિશાથી આવી હતી તે દિશા