Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1088
________________ ७२ - - पाताधर्मयात्रे नाम मणिकार. भाढयो यापदपरिभूत आसम् । तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणो भगवान् महावीर समरसत , ततः खलु श्रमणस्यभगावो महागीरम्यान्तिके पञ्चाणुप्रतिक सप्तशिक्षानतिक द्वादशविध गृहिधर्म प्रतिपन्न, तत• ग्वत्वहमन्यदा पदाचिद् असाधुदर्शनेन च यावत्-मिथ्यात्व विप्रतिपन्ना,ततः खल्वहमन्यदा कदा. चिद् ग्रीष्मकालसमये यावत्-पीपरशालाया पौषधमुपापय खलु विहरामि, ‘एवं ययैवचिन्ता, आपृच्छना, नन्दापुष्करिणी, पनपण्टा, सभाः तदेव सर्वम् ' तथैवचिन्तादिक दर्दुरेण पूर्वभूवे कृत तथैव तत् सर्व स्मृत, तद् यथा-मम तत्राष्टमभक्ते रायगिहे नपरे णदे णाम मणियारे अड़े जाव अपरिभूए । तेण कालेण तेण समएण समणे भगव महागीरे समोसढे, तण्ण समणस्स भग वओ महावीरस्स अति पाणुव्वय सत्तसिखायय जोव पडिवन्ने) मैं इसी राजगृह नगरमें नद नाम का मणिकार श्रेष्ठी था । विशेष रूपसे धन धान्यादि सपत्ति शाली एव जनमान्य था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर वहा आये-सो मैंने उनसे पाच अणुव्रत एवं सात शिक्षाप्रत रूप श्रावक धर्म अगीकार कर लिया था। (तण्ण अह अन्नया कयाई असाहुदमणेणय जार मिच्उत्त विपडियन्ने) किसी एक समय असाधु के दर्शन से तथा और भी कई निमित्तो से मैं मिथ्यात्व भाव रूप से परिणत हो गया-(तएण अह अन्नयाकयाई गिम्ह कालसमयसि जाव उचसपज्जित्ताण विरामि, एव जव चिंता आपुच्छणा नदापुरखरिणी वनसडा, सहाओ त चेव सव्व जाव नदाए पुक्खरिणी दद्दुरत्ताए उववन्ने, त अहोण अह अहन्ने, अपुन्ने, अकभूए । तेण कोलेण तेण समएण समणे भगव महावीरे समोसढे, तएण समणस्स भगवओ महावीररस अतिए पचाणुव्वइय सत्तसिम्सारइय जाव पडिवन्ने ) પહેલા આ રાજગૃહ નગરમાં જ નદ નામે મણિકાર શ્રેષ્ટિ હતે હું વિશેષ રૂપથી ધન-ધાન્ય વગેરેથી સમૃદ્ધ તેમજ જનમાન્ય (લોકોમાં પૂછાત) હતું તે કાળે અને તે સમયે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર ત્યાં પધાર્યા હતા કે તેઓશ્રી પાસેથી પાચ અણુવ્રત અને સાત શિક્ષાત્ર રૂપ શ્રાવક ધર્મ स्वीरी सीधा तो (तएण अह अन्नया कयाई असाहु द सणेण य जाव मिच्छत्त विपडि ने) मे १मते असाधुना शनी or lon पशु था थी हु मिथ्यात्वमा ३५मा परिणत गयो (तएण अह अन्नया कयाई गिम्हकालसमयसि जाव उबसपजित्ता ण विहरामि, एव जहेव चिता आपुच्छण नदा पुक्खरिणां वनस डा, सहाओ त चेव सन्ध जाव न दाए पुक्खरिणीए दद्दुरत्ताए उवव ने, त अहोण, अह अइन्ने, "

Loading...

Page Navigation
1 ... 1086 1087 1088 1089 1090 1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097 1098 1099 1100 1101 1102 1103 1104 1105 1106 1107 1108 1109 1110 1111 1112 1113 1114 1115 1116 1117 1118 1119 1120