Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अण्ट अङ्गराजचरितनिरूपणम्
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अथवा- एकद्रव्यरूपाणा च भैपज्याना पथ्यानामाहारविशेषाणाम् अथवा द्रव्यसयोगरूपाणाम् च तृणस्य च काष्ठस्य च आग्णानाम्=अङ्गरसकादीना च महरणाना च खड्गादिशस्त्राणा अन्येषा च बहूना पोतवहनमायोग्याणा = नौकायानोपनेयानां द्रव्याणा=स्थापनेन पोतवहन - नौकायान भरन्ति पूरयन्ति स्म । शोभने = शुभावहे, णय तणस्स य, कट्टुस्स य आवरणाण य पहरणाण य अन्नेसिं च बहूण पोचवणपाउरगाण दव्वाण पोयवहण भरेंति )
नौका यान में उन्हों ने चावलों को भरा, गेहुओ को भरा, गेहुओ के आटे को और आटे से निष्पन्न पक्वान्न विशेषको भरा । तैल, गुड घृत गोरस भरा पानी भरा पानी के वर्तनो को भरा । त्रिकुट आदि औषधियों को भरा पथ्याहार विशेष नैपज्यो को भरा, तृणों को भरा लकड़ियो को भरा अगस्स आदि आवरणो को, खड्ग, आदि शस्त्रों को तथा और भी अनेक वस्तुओं को जो पोत वहन के योग्य थी भरा ।
इस तरह उन्होंने इन समस्त वस्तुओं को, यथोचित स्थान पर स्थापित उस नौका यान को भर दिया । यहा पर जो औषध और भैषज्य ये दो शब्द प्रयुक्त हुए हैं उन से ऐसा भी अर्थ घोध होता है कि त्रिकूट आदि जो अलग २ द्रव्य हैं वे औषध और इन का समुदाय रूप जो द्रव्य है-जैसे चूर्ण आदि वह भैषज्य है । " पोयवहणपाउग्गाण पद का यह अर्थ है कि जो द्रव्य नौका द्वारा अच्छी तरह ढोयाजा सके वह सब उन्हो ने उस में भर दिया । ( सोहणसि तिहि करण रणाण य, पहरणाण य, अन्नॅसि च वहूण पोयवहणपाउरगाण दव्नाण पोयवहण भरेंति )
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તેમણે ચાખા, ઘઉં, ઘઉં નાલેટ તેમજ ઘઉંના લેાટથી ખનાવવામા આવેલુ पपुवान्न विशेष, तेल, गोज धी, गोरस, पाणी, पाणी लवाना पास, त्रिइट वगेरे औषधीयो, पथ्याहार विशेष लैषल्यो, यारी, लाउडा, અ ગરમ વગેરે આવરણા, ખડગ વગેરે શો અને બીજીપણ ઘણી વહાણુ મા લઈજવા ચેાગ્ય અધી વસ્તુએ વહાણુમા લાદી
આ પ્રમાણે તેમણે બધી વસ્તુઓને યવાન્થાને ગેાઠવીને વહાણને સામા નથી ભરી દીધુ भड उपर लेपन्य' ने 'औषध' या मे शो પ્રયુક્ત થયા છે તેથી અહીં આ પ્રમાણે પણ અર્થ થાય છે કે ત્રિકુટ વગેરે જે જુદા જુદા દ્રવ્યા છે તે ઔષધ અને આ બધાને એકઠા કરવા જેમકે यू वगैरे ते पल्ल्य " पोयवद्दणपाउगाण " पहने अर्थ या प्रभाले छे દ્રવ્ય નૌકાવડે સારી રીતે લઇ જઈ શકાય. તે મધુ તેમણે તેમા ભર્યું હતુ