Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवपिणी टीका अ०८ अगराजचरितनिरूपणम्
३२७ अथवा-एकद्रव्यरूपाणा च भैपज्याना पथ्यानामाहारविशेषाणाम् अथवा द्रव्यस योगरूपाणाम् च तणस्य च काष्ठस्य च आवग्णानाम् अङ्गरसकादीना च प्रहरणाना च खड्गादिशस्त्राणा अन्येपा च बहूना पोतवहनमायोग्याणा-नौकायानोपनेयाना द्रव्याणा स्थापनेन पोतवहन-नौकायान भरन्ति पूरयन्ति स्म । शोभने शुभावहे, णय तणस्स य, कट्टस्स य आवरणाण य पहरणाण य अन्नेसिं च पटूण पोयवहणपाउग्गाण दव्वाण पोयवण भरेंति )
नौका यान में उन्हों ने चावलों को भरा, गेहुओ को भरा, गेहुओ के आंटे को और आटे से निष्पन्न पक्वान्न विशेपको भरा । तैल, गुड घृत गोरस भरा पानी भरा पानी के वर्तनों को भरा। त्रिकुट आदि
औषधियों को भरा पथ्याहार विशेष भैपज्यो को भरा, तृणों को भरा लकडियो को भग अगस्स आदि आवरणों को, खड्ग, आदि शस्त्रों को तथा और भी अनेक वस्तुओं को जो पोत वहन के योग्य थी भरा। ?
इस तरह उन्हों ने इन समस्त वस्तुओं को, यथोचित स्थान पर स्थापित उस नौका यान को भर दिया। यहा पर जो औषध और भैषज्य ये दो शब्द प्रयुक्त हुए हैं उन से ऐसा भी अर्थ बोध होता है कि त्रिकूट आदि जो अलग २ द्रव्य हैं वे औषध और इन का समुदाय रूप जो द्रव्य है-जैसे चूर्ण आदि वह भैषज्य है। "पोयवरणपाउग्गाण" पद का यह अर्थ है कि जो द्रव्य नौका द्वारा अच्छी तरह ढोया. जा सके वह सब उन्हो ने उस में भर दिया । ( सोहणसि तिहि करण रणाण य, पहरणाण य, अन्नेसि च बहूण पोयवह्णपाउग्गाण दवाण पोयवहण भरेति)
તેમણે શેખા, ઘઉ, ઘઉલટ તેમજ ઘઉના લોટથી બનાવવામા આવેલ पवान विशेष, तस, घी, रस, yell, पाए लपानी पासત્રિફટ વગેરે ઔષધીઓ, પથ્યાહાર વિશેષ ભૈષજ્ય, ચારે, લાકડા, અગરસે . વગેરે આવરણ, ખડગ વગેરે શો અને બીજી પણ ઘણી વહાણ માં લઈ જવા ગ્ય બધી વસ્તુઓ વહાણમા લાદી
આ પ્રમાણે તેમણે બધી વસ્તુઓને યથાસ્થાને ગોઠવીને વહાણુને સામા નથી ભરી દીધુ અહીં ઉપર “વિજ્ય” અને “ પધ” આ બે શબ્દ પ્રયુક્ત થયા છે તેથી અહીં આ પ્રમાણે પણ અર્થ થાય છે કે ત્રિકુટ વગેરે જે જુદા જુદા દ્રવ્યો છે તે ઔષધ અને આ બધાને એકઠા કરવા જેમકે यू परत बोलायपोयग्रहणपाउगाण " पहने। अथ मा प्रमाणे કે જે દ્રવ્ય નૌકાવડે સારી રીતે લઈ જઈ શકાય તે બધુ તેમણે તેમાં ભર્યું હતું