Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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नगारधर्मामृतवपिणी टीका अ० १३ नन्दमणिकारभववर्णनम् पहिरुत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे वैभारपर्वतस्य अदूरसामन्ते-नातिदरे नातिसमीपे पार्श्व भागे इत्यर्थ. 'वत्युपाढगरोदयसि ' वस्तुपाठकलचिते-वस्तुपाठकानागृहादिनिर्माणशास्त्रनिपुणाना-भूगर्भविद्याविशारदाना रुचितः रुचिविषयीभृतस्तस्मिन् ताशे भूमिभागे-भूप्रदेशे यावर नन्दा-नन्दाभिधा पुष्करिणीवापी खनयितुम् । इति कृत्वा इति मनसिनिपाय एप-वक्ष्यमाणपकारेण समेक्षते,-विचारयति, सप्रेक्ष्य कल्पे मादुष्प्रभाताया यावत्-रजन्या तेजसा ज्वलतिमूर्ये-सूर्योदये सति पौपधं पारयति, पारयित्वा स्नातः कृतवलिकर्मा मित्रज्ञाति यावत्सरितः महार्थ 'जावरायारिद्द ' महाध महाहं विपुल राजाहमाभृत गृह्णाति, गृहीत्वा यत्रैर श्रेणिको अब यही उचित है कि मे भी दूसरे दिन प्रातः काल होते ही श्रेणिक राजा से पूछकर राजगृह नगर के वाहिर ईशान कोण की ओर वैभार पर्वत की तलहटी- पार्श्वभाग- में जिस स्थान को वास्तुशास्त्र के वेत्ता पास करे उस स्थान पर एक नदा नामको वावडी को खुदवाऊ । इस प्रकार उस ने अपने मन में विचार किया । (सपेहिता कल्ल पा० जाव पोसह पारेइ पारेत्ता हाए कयरलिकम्मे मित्तणाइ जाव सपरिवुडे महत्थ जाव रायारिह पाहुड गेण्ड, गेण्डित्ता, जेगेव सेणिए राया तेणेव उवा० उवागच्छित्ता जाव पाहुड उवटवेह, उपहवेत्ता एव वयासीइच्छामिण सामी ! तुम्भेहिं अन्भणुन्नाए समाणे रायगिहस्स बहिया जाव खणावेत, अहासुर देनाणुप्पिया ' ) विचार करके उसने प्रात. काल सूर्योदय होने पर पौषध को पारा (पाला)। (पार कर ) पाल कर पोपध को समाप्त कर-फिर उसने स्नान किया। स्नान से निपट कर काक आदि पक्षियों को अन्नादि का भाग रूप बलिकर्म किया। बाद में મને એજ ચગ્ય લાગે છે કે હું પણ આવતી કાલે સવાર થતા જ કેણિક રાજાની આજ્ઞા મેળવીને રાજગૃહ નગરની બહાર ઈશાન તેણમાં વભાર પર્વતની તળેટીમાં વાસ્તુશાસ્ત્રને જાણનારા જે સ્થાનને પમ દ કરે તે સ્થાન ઉપર એક नही नामे वा पोहावु मा ते तेथे मनमा विया२ इयो (सपेहिता कल्ल पा० जोव पोसह पारेइ पारे तो 'हाए कयनलिकामे मित्तणाइ जाव सपरिखुडे महत्थ जाव रायारह पाहुड गव्हइ गेण्हित्ता, जेणेव सेणिए राया तेणेव उवा० उवागच्छिवा जाव पाहुड उबट्टवेइ उट्टवेत्ता व क्यासी इच्छामि ण सोमी! तु भेहिं अभणुनाए समाणे रायगिहस्स पहिया जाव सणावे वए, अहासह देवाणुपिया !) पियार शन तो भी- हसे अवारे सूर्याय यता पौषध પાળે અને પવધ પાળીને તેણે ન્માન કર્યું અને ત્યારપછી કાગડા વગેરે