Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्म कथासूत्रे
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- व्यन्तरभेदास्तेषाम् तथा - आर्यको क्रियाणा च = आर्या मशान्तस्वमात्रा देव्यः कोह क्रिया = चण्डिकारूपादेव्यः, तासा बहूनि उपयाचितशतानि=बहुविधानि मा न्यताशतानि उपयाचमानाः २ कुर्वन्त २ स्तिष्ठन्ति ॥ २१ ॥
मूलम-तएणं अरहन्नए समणोवासए तं दिव्वं पिसायरूवं एजमाणं पासइ, पांसित्ता अभीए अतत्थे अचलिए असंभंते अणाउले अणुव्विग्गे अभिन्नमुहराग णयणवन्ने अदीणविमणमाणसे पोयवहणस्स एगदेससि वत्थतेणं भूमिं पमजइ, पम जित्ता ठाण ठाइ, ठाइत्ता करयलओ एव वयासी- नमोत्थूणं अरहताणं जाव सपत्ताण, जइ ण अह एत्तो उवसग्गाओ मुचामि तो मे कप्पड़ पारितए अहणं एत्तो उवसग्गाओ ण मुंचामि, तो मे तहा पच्चवखाए यन्वे त्तिकट्टु सागार भत्त पच्चक्खाइ, तएण से पिसायरूवे जेणेव अरहन्नए समणोवासप तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहन्नग एव वयासी - ह भो । अहन्नगा अपत्थियपत्थया जाव परिवज्जिया णो खल्लु
है इस बात को देख कर वे सब के सब भयभीत हो गये, डर गये, उद्विग्न हो गये । उनके प्रति प्रदेश मे भय का सचार हो गया। इस तरह होकर वे सब परस्पर में एक दूसरे के शरीर से चिपक गये । और अनेक इन्द्रों की स्कन्द की कार्तिकेय की रूद्र की शिव की वैश्रमण की नाग की भूत की यक्ष प्रशान्त स्वभाव वाली देवियों की तथा चण्डि का रूप देवियो की सैकडों प्रकार बार २ मान्यता करने लग गये। सूत्र "२१"
તાલ પિશાચ ને તેઓએ પેાતાની તરફ જ આવતે જોયે! આરીતે જોઈને તેા અધા ભ્રયત્રસ્ત થઈગયા, ખીગયા ઉદ્વિગ્ન થઈગયા તેમના આત્માના પ્રતિપ્રદેશમા ભયનુ સચરણા થઈ ગયુ તેઓ ભયભીત થઈને એક બીજાને ચાટી પડયા, અને તેમાથી ઘણા ઈન્દ્રોની દની, કાતિ કેયની रुद्रनी, शिवनी, वैश्रभाणुनी, नागनी, लूतनी, यक्षनी, प्रशान्त स्वभाववाजी દેવીએની તેમજ ચડિકારૂપ દેવીઓનીસેક પ્રકારની વારવાર
માનતા
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માનવા લાગ્મા | || સૂત્ર ૨૧ "
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