Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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છપર
हाताधर्मकथा लाना च 'भोसभेमज्जभत्तपाणेण' औषध भैषज्यभक्तपानेनौपधमेन्द्रव्य साध्य, भेषन भनेकद्रव्यसयोगनिप्पन्न भक्तपानम्-आहारः, पानम् पानीय, तेन, 'पडिपारकम्मं ' प्रतिचारकर्म-सेवारूप म कुर्वन्तो विहरन्ति ।
ततस्तदनन्तर खलु नन्दः नन्दनामामणि कारश्रेष्ठी, ' उत्तग्रिले ' उत्तरीये वनपण्डे एकां महतीं ' अल कारियसभ ' अलकारिफसमानापितर्मशाला कार यति, कीदृशीम् ? अनेकस्तम्भशतसनिविष्ठा यावत्-प्रतिरूपाम् , तर तस्या नापितर्मशागा बहवोऽलङ्कारिक पुरुषा'नापिताः, दत्तभृतिभक्तवेतनाः बहूना द्रव्य माय दवाका नाम औपप है और जो अनेक दवाओंके सयोगसे दवाई तैयार की जाती है वह भैपज्य है (तग्ण ण दे उत्तरिल्ले वणसडे एग मह अलकारियसभ करावेह अणेगखममयस निविट्ट जार पडिरूव, तत्य यहवे अलकारियपुरिसा दिनभइभत्तवेयणा यहण समणाण य मारणाण य अगाताण य गिलाणाण य रोगियाण य दुबलाण य अलकारिय कम्म करेमाणार विहरति तरण तीए नदाए पोस्खकिणीए बहवे सणाहा य अणाहा य पथिया य परियाय करोडिया य कप्पडिया य तणहारा य पत्तहारा य कहाराय अप्पेगइया व्हायति, अप्पेगइया पाणिय पियति, अप्पेगइचा पाणिय सवति, अप्पेगहया विसज्जिय से य जल्लमल परिस्समनिद्द खुप्पिवासा सुह सुहेण विहरति ) इस के बाद उस मणिकार श्रेष्ठी नद ने उत्तर दिशा सबन्धी वनषड मे एक घड़ी भारी नापित कर्म शाला बनवाई । यह भी सैकडों खभो से निर्मित्त की गई શબ્દથી ગૃહીત થયેલા છે એક દ્રવ્ય-સાધ્ય દવાનું નામ ઔષધ” છે અને જે અનેક (ઘણી) દવાઓના મિશ્રણથી તૈયાર કરવામા આવે છે તે ભૈષજ્ય છે (तएण दे उत्तरिले वणसडे एग मह अल कारियसभ करावेइ अणेगसमसय स निविट्ठ जाव पडिरूव, तत्यण बहवे अलकारियपुरिसा दिनभइभत्तवेयणा वहूण समणाण य, माहणाण य, अणाहाण य, गिराणाण य, रोगियाण य, दुध लाण य, अल कारियकम्म करेमाणा २ विहर ति तएण तीए नदार पोक्खरिणीए बहवे सणाहा य अणाहा य प थिया य, वहिया य करोडीया य कप्पडिया य तण हारा य, पत्तहारा य कटुहारा य अप्पेगइया पहाय ति, अप्पेगइया पाणिय पियति अप्पेगइय। पाणिय सबह ति, अप्पेगइया विसज्निय से य जल्लमलपरिसमनिद सुपिवासा सुह सुहेण विहर ति) त्यारपछी ते मणि२ श्रेष्ठी न त२ हशाना વનષડમાં એક વિશાળ નાપિત કર્મશાળા ( હજામ શાળા ) બનાવડાવી તે પણ સેકડે થાભલાઓ ઉપર બાધવામાં આવી હતી જોવામાં તે ખૂબ જ
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