Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भनगारधर्मामृतवपिणी टीका अ०८ महराजचरिते मरहन्नकश्रावकवर्णनम् ३५१ कप्पड़, तव सीलव्वयगुणवेरमण पच्चक्खाण पोसहोववासाइ चालित्तए वा एव खोभेत्तए वा खडित्तए वा भजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जाणं तुम सीलव्वय जाव ण परिच्चयसि तो ते अहं एय पोयवहणं दोहि अगलियाहिं गेहामि, गिणिहत्ता सत्तठतालप्पमाणमेत्ताइ उड्ड वेहास उवि. हामि, उबिहित्ता अतो जलसि णिव्वोलेमि जेणं तुमं अट्टदुहवस असमाहिपन्ते अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि तएणं से अरहन्नए समणोवासए त देव मणसा चेव एवं वयासी-अह णं देवाणुप्पिया । अरहन्नए णाम समणोवासए अहिगयजीवाजीवे नो खलु अह सके केणइ देवेण वा जाव निग्गथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा तुम ण जा सद्धा त करेहित्तिक? अभीए जाव अभिन्नमुहरागणयणवन्ने अदीणविमणमाणसे निचले निप्फदे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ ॥ सू० २० ॥ ____टीका-अरहन्नकाज्य सायात्रिऊर्य थानुष्ठित तदुक्तम्, अधुनाऽरहन्नकेन पिशाचरूपमवलोक्य यत् कृत तदाह-'तएण' इत्यादि । ततस्तदा ग्वलु स अरहनक. अरहन्नकनामको मुख्य मायात्रिक , श्रमणोपासक' श्रावकस्त दिव्यम्
तएण से अरहनए इत्यादि । टीकार्थ-(तएण) इसके बाद मुख्य सायात्रिक अरहन्नक को छोड कर अन्य सायात्रिकों ने जो २ किया उस के वाद (समणोवासए अरहनए) श्रमणोपासक अरहन्नक ने (त दिव्व पिसायस्व पासित्ता ) जय दिन्य
' तएण से अरहम्नए ' त्या
ટીકાઈ–(ફળ) અરહનક સિવાયના બીજા સયાત્રિકની આવી હાલત થઈ स्या२ ५, (समणोवासए परहन्नए) श्रभास म२४ पिसायरूव पासित्ता) यारे ते हिव्य अपूट-सहमत