Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1073
________________ अनुगारधर्मामृतषिणी सीका अ० १३ नदमणीकारभवनिरूपणम् ६३ ततस्तदनन्तर सलु राजरहे नगरे इमामेन्दूपा घोषणा श्रुत्वा निशम्य बहवो वैद्या यावत् कुशल पुत्रा 'सत्यकोमहत्थगया य' शस्त्रकोशहस्तगताश्च हस्ते सुरादिशस्त्रभाजनधारकाः, 'कोसगपायहत्थगया य ' कोगकपात्रहस्तगताः चर्ममयोपकरणधारिणः, 'सिलियाहत्थगया ' शिलिकाहस्तगता: किरातविक्ताद्यौपधधारिण 'गुलियाहत्थगया य' गुलिकाहस्तगताश्च हस्ते द्रव्यसयोगनिर्मितवाटिका धारिणः, औपचभैपज्यहस्तगताश्च स्वकेभ्यः स्वकेभ्यो निष्कामन्ति-निर्गन्छन्ति, निष्क्रम्य राजगृह मध्यम-येन योव नन्दस्य मणिकारश्रप्ठिनो गृह तत्रोपागच्छन्ति, कौटुम्यिक लोगो ने उसी के अनुसार वैसी ही घोपणा कर दी और याद में आकर नद को इसकी खबर दे दी । (तएण रायगिहे इमेयाल्व घोसण सोच्चा णिसम्म यत्वे वेज्जा य वेजपुत्ता य जाव कुसलपुत्ता य सत्यको महत्व गया य कोमगपायहत्य गया यि सलियाहत्य गया य गुलिया हत्य गया य ओसह भेसन हत्य गया य महिंगिहेहिं तो निक्खमति, निक्समिता रायगिर नपर मज्झ मज्झे ण जेणेव नदस्स मणियारसेहिस्स गिहे तेणेव उवागच्छति ) इस प्रकार की घोपणा सुन कर और उसको विचार कर राजगृह नगर में अनेक वैद्य, वैन्य पुत्र यावत् कुशल कुशल पुत्र, अपने २ हायो मे क्षुरादिशस्त्र एव भाजनो को, चर्ममय उपकरणों को किरात तिक्त औषध को गोलियों को, औषध भैषज्य को ले लेकर अपने २ घरो से निकले । और निकल कर राजगृह नगर के बीच से चल कर जहाँ मणिकार श्रेष्ठी नद का घर था वहा કૌટુંબિક લોકોએ શેઠની આજ્ઞા પ્રમાણે જ ઘેષણ () કરી અને ત્યાર पछी नहुने तेनी ५५२ मापी (तएण रायगिहे इमेयारून घोसण सोचा णिसम्म बहवे वेज्जाय, वेज्जपुत्ता य जाव कुसलपुत्ता च सत्यकोसहत्य गया य कोसगपायहत्थगया य सिलियाहत्थगया य गुलियाहत्थगया य ओसह भेसज्जहधगया य सरहिं २ गिहेहितो निक्सम ति, नियमिता गयगिह नयर मज्झ मझेण जेणेव न दस्स मणियार सद्विस्स गिहे तेणेव उनागच्छ ति ) આ રીતે ઘણું સાભળીને અને તેના વિશે વિચાર કરીને રાજગૃહ નગરમાથી ઘણુ વિદ્ય, વૈદ્યપુત્ર, યાવત્ કુરાલ અને કુરાલપુત્રે પોતપોતાના હાથમાં સુરા વગેરે શસ્ત્રો અને ભાજ, ચર્મમય ઉપકરણ એટલે કે ચામડાના સાધન, કિરાતક (કરિયાતુ) ને, ગાળીને, ઔષધ ભષયને લઈને પિતાપિતાના ઘરથી બહાર નીકળ્યા અને નીકળીને રાજગૃહ નગરની વચ્ચે यन गया भा२ अष्टिननु ५२ हेतु त्या पक्षाच्या (उत्रागन्ठित्ता न दास

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