Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1079
________________ T ७६७ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० १३ नन्दमणिकारभननिरूपणम् प्रदेशिक प्रदेशयन्यापेक्षया N योनिषु निवायु अट्टदुहट्टवसट्टे ' आर्तदुःखविशार्च == मनमा दुःखित', दु.या देहेन, बशा = पुष्करिणीसमा सक्तेन्द्रिवशेन तत्सुखनियोगसम्भावना पीडित. = एतेपा कर्मधारये आर्चदुःखाविशतिः=आर्त्त यानोपगतदत्यर्थ' काल्मासे काल कुत्वा नन्दाया पुष्करिण्यां 'ददुरी कुन्डिस' दर्दर्याः कुक्षो = मण्डकीगर्भे 'दद्दूरत्ताए' दर्दुग्तया मण्डकतया, उपपन्न' सजातः ॥ मु० ६ ॥ मूलम् - तणं गंदे दद्दरे गव्भाओ विणिम्मुक्के समानें उम्मुकबालभावे विन्नायपरिणयमित्ते जोव्वणगमणुपत्ते नदाए पोक्सरणीए अभिरममाणे२ विहरइ, तऍणणंदाए पोक्खरणीए बहूजेणे पहायमाणो च पियइय पाणिय च सवहमाणो अन्न परसिए अँठ्ठठुर यसट्टे काल मामे काल किच्चा नदाए पोखरिणीए दरी कुनि दददुरत्ताए उवबन्ने) उन सोलर, रोगातको से अत्यन्त व्यथित हुआ वह नद नदा पुष्करिणी मे मूर्च्छितमति एव अत्यन्त आसक्त मन होता हुआ तन्मय आत्मपरिणामवाला बन गया सो इस कारण उसने प्रदेश यध की अपेक्षा से तिर्यञ्च आयु का यन कर लिया। मन से दुःखित देह से, व्यथित एवं पुष्करिणी में समा सक्त अन्त. करण से उसके सुखके वियोग की सभावना करके अत्यन्त पीडित बने हुए अर्थात आर्तम्यान के वशवर्ती हुए उसने मृत्यु के समय देह का परित्याग किया सो मर कर वह उस नदा पुष्करिणी में एक मेंढकी के गर्भ में मेढक की पर्याय से उत्पन्न हो गया | सूत्र || ६ || , निबद्धा बद्ध एसिए अठ्ठठु हट्ट सट्टे कालम से काल किन्वा नदाए पोक्सरिणीए दुरी कुच्छसि दद्दुरत्ताए उअश्न्ने ) भोज रोग भने भातકાથી ખૂબ જ ક ટાળેલા તે નદ શ્રેષ્ઠિના વાવમા સ્મૃતિ મતિ એટલે ક અત્યત આસક્ત મનની તન્મય આત્મપશ્થિામ યુક્ત થઈ ગયે એધી તેનું પ્રદેશળ ધની અપેક્ષાએ તિય ચ આયુના ખધ કરી લીધે મનથી દુખી, શરીરથી વ્યથિત અને પુર્ખાણી ( વાવ ) મા આસક્ત અન્ત કરણથી એટલે કે તેના સુખના વિયાગની સભાવના કરીને ખૂબ જ પીતિ થઇને આ ધ્યાન કરતા તેણે મૃત્યુના મમયે દેહ યે દેહ છોડીને નઇ શ્રેષ્ઠિ તે ન દા પુ ક ણિીમા જ એક દેડકીના ગર્ભ મા દેડકાના પર્યાયથી ઉત્પન થJ ગયે, સૂત્ર ૬

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