Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतयषिणी टी० अ० १३ न दमणिकारभवनिरूपणम् ७५ य सयणेसु य सन्निसन्नो य सतुयहो य पेच्छमाणो य साहे. माणो य सुहसुहेणं विहरइ, त धन्ने कयत्थे कयपुन्ने कयाणंदे लोए। सुलद्धे माणुस्लए जम्म-जीवियफले नदस्त मणियारस्स, तएणं रायगिहे सिघाडग जाव बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ ४ धन्ने णं देवाणुपिया | णदे मणियारे सो चेवः गमओ जाव सुहसुहेणं विहरइ । तएण से गंदे मणियारे बहुजणस्स अतिए एयमह सोच्चा णिसम्म हहतुढे धाराहयकलवगंपिव समूसियरोमकूवे पर सायासोक्खमणुभवमाणे विहरइ ।। सू०५॥
टीका-'तएण णदाए' इत्यादि । ततरतदनन्तर खलु नन्दाया पुष्करिण्या बहुजनः 'हायमाणो य ' स्नान कुर्वन् 'पीयमाणोय' पियन् पानीय च संवह;
'तएण णदाए पोखरिणीए' इत्यादि । टीकार्थ-(तण्ण) इसके बाद (णदाग पोक्खरिणीए डायमाणा य प्रियमाणो य पाणियच सवमाणो य बहुजणो अण्गमण्ण एव वयासीधण्णे ण देवाणुप्पिया! णदे मणियारसेट्ठी कयत्थे जाव जम्मजीवियफले जस्सण इमेया रूवा णदा पोक्खरणी चाउकोणा जाव पडि रूचा, जि स्साणं पुरथिमिल्ले त चेव सव्य चउस्तु वि वणसडेसु जाव रायगिह विणिग्गओ जत्य बहुजणो आसणेलु य सयणेसु य सन्निसन्नो य सतुयहो य पेच्छमाणा य सोहेमाणो य सुह सुहेण विहरह) उस नदा पुष्करिणी में स्नान करने वाला पानी पीनेवाला और उस में से पानी 'तएणं णाए पोरसरिणीए' इत्यादि
थ-(तएण ) त्यामाह (णदाए पोक्सरिणीए हायमाणो य, पियमाणो य पाणिय च स वहमाणो य बहुग्नणो अण्णमण्ण एव वयासी धण्गे ण देवानुपिया ! ण मणियारसेट्टी कयस्य जार जम्मजीवि फले जस्मण इमेयारूप णदा पोस रणी चाउकोणा जाव पडिरूवा, जिस्साण पुरथिमिल्ले त चेत्र सन्न चउसु वि वण स डेसु जाव रायगिह विणिग्गओ जत्थ हुनणो आसणेसु य सयणेसु य सन्निसन्नो य स तुयट्टो य पे छमाणो य सोहेमाणो य सुह सुहेण विहरइ) न पुरिया (વાલ) માં સ્નાન કરનાર, પાણી પીનાર, અને તેમાંથી પાણી ભરનાર, દરેકે દરેક માણસ પરસ્પર આ પ્રમાણે વાત કરવા લાગ્યા કે હે ભાઈ! મણિયાર
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