Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1048
________________ মাথা वस्तुमम्हेन निष्पायन्ते लोहकाष्ठादिभीदयादिवत् , तानि, एतानि पशुपक्ष्या दिरूपाणि ' उरदसिज्जमाणाइ २' परश्यमानानि २ लौरेन्योन्य पुनः पुनर पैदृश्यमानानि विष्ठन्ति-सन्ति । ता सल बहनि 'पासणाणिय' आसनानि घेत्रकाप्ठादिनिर्मितानि चतुकोणादित्पाणि शयनानि-शयनयोग्यानि सार्द्धवतीयहस्तपरिमितानि फल काढीनि, पीदृशानीत्याह-अत्युय' इत्यादि-' अत्युयपं चरयुयाइ ' नास्तनप्रत्यारततानि, आरततानि मृदुल रखादिनाऽऽच्छादितानि, में त्यास्ततानि = तदुपरि पुन पुनर्दुकलादिनाऽऽच्छादितानि तिष्ठन्ति वर्तन्ते । पुनश्च-तत्र खलु बहवो नटायगाननृत्यातरः 'हाय' नृत्ता. केरलमाथि क्षेपमात्रेण नर्तनशीलगश्च यावत् 'दिनभदभत्तवेयणा' दत्तभृतिभक्तवेतना:-दत्ता मिट्टी, खरियामिट्टी से नही आदि की उसमें रचना करवाई। ग्रन्धिम, वेष्टिम, परिम, एव सधातिम आदि अनेक खेल भी उस में दिखलाए (तत्यण वणि आसणाणि य, सयणाणि य, अत्यु य पचत्युयाइ चिट्ठति तत्यण बहरे णडार पट्टा य, जाव दिनमा मत्तवेयणा तालायकर्म फेरेमाणा विहरति) अनेक आसन, शयन, जो आस्तृत प्रत्यास्तन थे वे भी उसमें रसवाये, वेत्र अथवा काष्ठ आदि से निर्मित चतुष्किकादि रूप-कुर्सी आदिरूप जो होते हैं वे ओमन है एव साढे तीन हाथ के जो काप्ठ फलक-नखता ऑदिरूप होते हैं कि जिन पर अच्छी तरह सोया जा सकता है वे शयन हैं। इन आसन शयनों के ऊपर मृदुल धन्नादि, विछा हुआ था इसलिये ये आस्तृत थे, और उन मृदुल वस्त्रा दिको के ऊपर और भी दूसरा पलग पोस पिछा हुआ था इस लिये वे प्रत्यस्तृत थे। नद सेठ ने उस चित्र सभा में नटो को नत्तों को-नृत्य રચના કરાવડાવા ગ્રથિમ, વેષ્ટિમ, પૂરિમ અને રાઘાતિમ વગેરે ઘણી જાતની २भतेपशु तमा हारा१वी (तत्थण बहूणि आसणाणि य, सयणाणि, य, अत्थुय पञ्च थुयाइ चिटू ति, तथण बहवे णडाय णट्टा य, जाव दिनभइभत्तवेयणा तालायकम्म करेमाणा विहर ति) ! सामनी, घणी पथारामा १२ भास्तृत પ્રત્યાસ્તૃત હતા–પણ તેમાં મૂકાવડાવી વત્ર કે લાકડા વગેરેથી બનાવવામાં આવેલી ચતુખિના વગેરે રૂપ ખુરશી રૂપ જે હોય છે તે આસન છે અને સાડા ત્રણ હાથા જે લાકડાના તખતા વગેરે હોય છે કે જેના ઉપર સારી રીતે સૂઈ શકાય–તે શયન છે આ આસને તેમજ શયની ઉપર કમળ વસ્ત્રો વગેરે પાથરેલા હતા એટલા માટે જ તેઓ આસ્તૃત હતા તે કોમળ વસ્ત્રો વગેરે ઉપર એક બીજ વસ્ત્ર પાથરેવુ હતુ એટલા માટે એઓ પ્રત્યા હતા નદ શેઠે તે ચિનસભામાં નટે, નૃત્તનાચનારા માણસો-ભતિ.

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