Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1099
________________ ویی अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० १३ नन्दमणिकारभवनिरूपणम् दूपमभिगृह्णाति, अभिगृह्य यावज्जीव पष्टपप्ठेन-पाठपष्ठमातेन यानत्-स दर्दुरो भिग्रहग्रहणपूर्वक स्वीकृतेन तप मणाऽऽत्मान भावयन् रिहरति-स्तेस्मा स०७॥ __ मूलम्-तेणं कालेण तेणं लम एणं अह गोयमा । गुणसिलए चेइए समोसढे परिसा निग्गया, तएणं नंदाए पुक्खरिणीए बहजणो यह यमाणो य ३ अन्नसन्नं एव वयासीदेवाणुप्पिया। समणे३ इहेव गुणसिलए चेइए समोमढे, त गच्छामो णं देवाणुप्पिया । समण भगव महावीर वदामो जाव पज्जुवासामा एय मे इहभवे परभवे य हियाए जान अणुगामियत्ताए भविस्सइ तएणं तस्स ददग्रस्त वहुजणस्त अतिए एयमट्ट सोच्चा निसम्म अयमेयारूवे अज्झथिए ५ समुप्पज्जित्था-एव खलु समणे भगवं महावीरे इहेव गुणसि लए चेइए समोसढे, त गच्छामि णं समणं३ वदामि जाव पज्जुवासामि एव सपेहेड सपेहित्ता गंदाओ पुक्खरणीओ सणिय २ उत्तरइ उत्तरित्ता जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ । उकिटाए ददरगईए वीइवयमाणे जेणेव मम ......... रेत्थ गमणाए, इम च णं सेणिए ,राया पारणाके दिन में नदा पुष्करिणी के तट पर के अचित्त स्नानोदक से तथा लोको के द्वारा दोहोर्तन करने पर शेषभूत इधर उधर पतित यव चूर्णादि निर्मिन पिष्टिका से अपने शरीर की यात्रा का निर्वाह करूँगा, इस प्रकर का अभिप्रर उसने ग्रहण कर लिया।। हम करह अभिग्रह ग्रहण पूर्वक वह दर्दुर धृत पष्ठ पष्ठ भक्त की तपस्या से आत्मशुद्वि करने में लग गया ॥ मृत्र ७ ॥ વાવના કિનારાની ચારે બાજુના અચિત્ત સનાનેદકથી તેમજ લોકો વડે દેહ વર્તન કર્યા પછી વધેલા અને આ મતેમ વેરાઈને પડેવા જવના લોટ વગેરેથી પિતાના પિંડને શરીરને નિર્વાહ કરીશ આ રીતે તેણે અભિગ્રહ લઈ લીધે આમ અભિગ્રહ ધારણ કરીને દેડકે વૃષ્ઠ ભક્તની તપસ્યા કરીને આત્મશુદ્ધિ ४२पामा तल्लीन थई भय सूत्र “७" डा ९८

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