SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ ] तत्वार्थ सूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : शुभं विशुद्धमव्याघाति चाहारकं प्रमत्तसंयतस्यैव । २, ४६. आहारक सरीरे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगागारे परणते प्रमत्तसंजय समदिट्टि संठा संठिप पण्णत्ते । समचउरंस प्रज्ञापना पद २१ सूत्र २७३. छाया- आहारकः भगवन्! कतिविधः प्रज्ञप्तः १ गौतम ! एकाकारः प्रज्ञप्तः .. प्रमत्तसंजय सम्यग्दृष्टि:. · समचतुरं स्रसंस्थानसंस्थितः मज्ञप्तः । प्रश्न - - भगवन् ! आहारक शरीर कितने प्रकार का होता है ? उत्तर - गौतम ! आहारक का एक ही आकार होता है । यह प्रमत्त संबत सम्यग्दृष्टि के ही होता है तथा इसका आकार समचतुरस्रसंस्थान रूप होता है । .......... नारकसम्मूच्छिनो नपुंसकानि । २. ५०. तिविहा नपुंसगा पण्णत्ता, तं जहा - रतियनपुंसगा तिरिक्खजोणियनपुंसगा मणुस्सनपुंसगा । स्थानांग स्थान ३ उद्दे० १ सूत्र १३१. छाया-- त्रिविधानि नपुंसकानि मझप्तानि तद्यथा - नारकनपुंसकानि, तिर्यग्योनिनपुंसकानि मनुष्य नपुंसकानि । भाषा टीका – नपुंसक तीन प्रकार के होते हैं - नारक नपुंसक, तिर्यच नपुंसक और मनुष्य नपुंसक | न देवाः । २. ५१. असुरकुमारा यणं भंते! किं इत्थीवेया पुरिसवेया नपुंसग
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy