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योग और मंत्र (२) 'अरिहंतसिद्धआयरियउवज्झायसाहू' ये सोलह अक्षरवाली विद्या है। जो साधक इसका दो सौ बार जप करता है उसे उपवास का फल मिलता है।
'अरिहंतसिद्ध', इस छह अक्षरवाली विद्या का तीन सौ बार तथा 'अरिहंत', इस चार अक्षरवाली विद्या का चार सौ बार और 'असिआउसा', इस पांच अक्षरवाली विद्या का पांच सौ बार जपकरने वाला साधक एक उपवास के फल को प्राप्त करता है।
गुरु पंचकनामोत्था विद्या स्यात् षोडशाक्षरा। जपन् शतद्वयं तस्याश्चतुर्थस्याप्नुयात्फलम्।। शतानि त्रीणि षड्वर्णं चत्वारि चतुरक्षरम्। पंचवर्णं जपन् योगी, चतुर्थफलमश्नुते॥
योगशास्त्र ८.३८.३६
१५ जनवरी २००६
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