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योगी का नेत्र
योगसिद्ध पुरुष के नेत्रों में एक अलौकिक समता का प्रवाह होता है।
जिसने योग की साधना नहीं की वह अप्रिय करने वाले के प्रति द्विष्ट और प्रिय करने वाले के प्रति रक्त हो जाता है।
योगी अप्रिय व्यवहार करने वाले के प्रति भी अकल्पित व्यवहार करता है।
अपराध करने वाले व्यक्ति के सामने आने पर कृपा के कारण कनीनिकाओं की गति श्लथ हो जाती है और आंखें नम।
कृतापराधेऽपि जने, कृपामन्थरतारयोः । ईषद्वाष्पाद्रयोर्भद्रं, श्रीवीरजिननेत्रयोः ।।
योगशास्त्र १.३
१३ जनवरी २००६