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२ : सम्बोधि
होने लगा । वर्षा होने लगी । मेघ ऋतु का आभास होने लगा । रानी धारिणी अपने परिवारजनों से परिवृत होकर, हाथी पर आरूढ़ हो वन-क्रीड़ा करने निकली। अपनी इच्छा के अनुसार क्रीड़ा सम्पन्न कर वह महलों में लौट आयी । उसका दोहद पूरा हो गया ।
मास और नौ दिन बीते । रानी ने एक पुत्र रत्न का प्रसव किया। गर्भकाल में मेघ का दोहद उत्पन्न होने के कारण सद्यजात शिशु का नाम मेघकुमार रखा गया । वैभवपूर्ण लालन-पालन से बढ़ते हुए शिशु मेघकुमार ने आठ वर्ष पूरे कर नौवें वर्ष में प्रवेश किया। माता-पिता ने उसको सर्वकला निपुण बनाने के उद्देश्य से कलाचार्य के पास शिक्षा ग्रहण करने भेजा । वह धीरे-धीरे बहत्तर कलाओं में पारंगत हो गया ।
मेघकुमार ने यौवन में प्रवेश किया। आठ सुंदर राज - कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ ।
एक बार भगवान् महावीर राजगृह नगर में आए । मेघकुमार गवाक्ष में बैठा-बैठा नगर की शोभा देख रहा था । उसने देखा - नगर के हजारों नर-नारी एक ही दिशा की ओर जा रहे हैं । उसके मन में जिज्ञासा हुई । उसने अपने परिचारकों से पूछा । उन्होंने भगवान् के समवसरण की बात कही । मेघ का मन भगवान् के उपपात में जाने के लिए उत्सुक हो उठा । अश्व रथ पर आरूढ़ होकर वह भगवान् के समवसरण में गया । भगवान् की अमोघ वाणी सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ । उसका वैराग्य-बीज अंकुरित हो गया । पूर्वसंचित कर्मों की लघुता से उसके मन में प्रव्रज्या की भावना उत्पन्न हुई ।
वह घर आया। माता-पिता से कहा- मैं प्रव्रज्या ग्रहण करने के लिए उत्सुक हूं। यह विचार सुन महारानी धारिणी शोक से आकुल व्याकुल हो गयी । वह अपने प्रिय पुत्र का वियोग नहीं चाहती थी । माता धारिणी और पुत्र मेघ के बीच लंबा संवाद चला । माता ने उसे समझाने का पूरा प्रयत्न किया । मेघ का मन मोक्षाभिमुख हो चुका था। माता की बातों का उस पर कोई असर नहीं हुआ । उसने माता को संसार की असारता और दुःख - प्रचुरता से अवगत कराया । माता ने अंत में कहा - 'पुत्र ! तुम प्रव्रजित होना ही चाहते हो, हम सब से बिछुड़ना ही चाहते हो तो जाओ, सुखपूर्वक प्रव्रजित हो जाओ। किंतु वत्स ! एक बात हमारी भी मानो । हम तुम्हें अपनी आंखों से एक बार राजा के रूप में देखना चाहते हैं । तुम एक दिन के लिए भी राजा बन जाओ। फिर जैसा तुम चाहो, वैसा कर लेना ।' मेघकुमार ने एक दिन के लिए राजा बनना स्वीकार कर लिया ।
मेघकुमार के राज्याभिषेक की तैयारियां हुईं। शुभ मुहूर्त्त में राज्याभिषेक की विधि संपन्न हुई । मेघकुमार राजा बन गया। सभी ने उसे बधाइयों से वर्धापित किया । राज्य-संपदा मेघकुमार को लुभा नहीं पाई ।
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