________________
आमख
पच्चीस सौ वर्ष पुरानी बात है। मगध सम्राट् श्रेणिक की यशोगाथा दिग्-दिगंत में व्याप्त थी। उनकी पट्टरानी का नाम धारिणी था। एक बार वह अपने सुसज्जित शयनागार में सो रही थी। अपररात्रि की बेला में उसको एक स्वप्न आया। उसने देखा- "एक विशालकाय हाथी लीला करता हुआ उसके मुख में प्रवेश कर रहा है।" स्वप्न को देख वह उठी। महाराज श्रेणिक को निवेदन कर बोली'प्रभो ! इसका क्या फल होगा ?' महाराज श्रेणिक ने स्वप्नपाठकों को बुलाकर स्वप्न-फल पूछा। उन्होंने कहा-'राजन् ! रानी ने उत्तम स्वप्न देखा है । इसके फलस्वरूप आफ्को अर्थलाभ होगा, पुत्रलाभ होगा, राज्यलाभ होगा और भोगसामग्री की प्राप्ति होगी।' राजा और रानी बहुत प्रसन्न हुए।
समय बीता। महारानी ने गर्भ धारण किया। दो महीने व्यतीत हुए। तीसरा महीना चल रहा था। रानी के मन में अकाल में मेघों के उमड़ने और उनमें क्रीड़ा करने का दोहद उत्पन्न हुआ। उसने सोचा-'वे माता-पिता धन्य हैं जो मेघऋतु में, बरसती हुई वर्षा में यत्र-तत्र घूमकर आनंदित होते हैं। क्या ही अच्छा होता, मैं भी हाथी पर बैठकर झीनी-झीनी वर्षा में जंगल की सैर कर अपना दोहद पूरा करती।' रानी ने इस दोहद की चर्चा राजा श्रेणिक से की। उस समय वर्षा ऋतु नहीं थी। मेघ के बरसने की बात अत्यन्त दुरूह थी। राजा चिंतित हो उठा । उसने अपने महामात्य अभयकुमार को सारी बात कही। महामात्य राजारानी को आश्वस्त कर दोहद-पूर्ति की योजना बनाने लगा।
अभयकुमार ने देवता की आराधना करने के लिए एक अनुष्ठान प्रारंभ किया। तेले की तपस्या कर, मंत्र विशेष की आराधना में लग गया। तीन दिन पूरे हुए। देवता ने प्रत्यक्ष होकर आराधना का प्रयोजन जानना चाहा । अभयकुमार ने धारिणी के मन में उत्पन्न अकालमेघ वर्षा में भ्रमण की बात कह सुनाई। देवता ने कहा- 'अभय ! तुम विश्वस्त रहो । मैं दोहदपूर्ति कर दूंगा।'
कुछ समय बीता। एक दिन अचानक आकाश में मेघ उमड़ आये। सारा आकाश मेघाच्छन्न हो गया। बिजलियां चमकने लगीं। मेघ का भयंकर गर्जारव
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org