Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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(१३) भीम पर्व-रचयिता गंगादास । सं० १६७१
लिख्यते भीस्म पर्व गंगादास कृत । आदि
सेवा प्रादि पुरुष मनुलाइ, ये हि संवत् उतमा गति पाए । पदन्ह घदन्द्र मइ सो हरि, रहरि मैसे पागि काठ बह बहई ॥ तिस मह तेनुयो है समान, यै सुवास फूल मह जान ।
अव गनपति प्रनवौ कर जोरि, ये हिते युधि होह नहि पोरी । सरस्वती के सेवा करहु, श्रादि कुमारी ग्यान मन हरहु । सारद माता परसनि होड, सुरनर मुनि सेवै सब कोई ।
संकर चग्न मनावौ, सुमति हि के मोहि पास । बिस्तर कथा होई जेहि दिन करि गंगादास । संवत नाम कहा अब चहउ, मालह से एक हत्तर कह । मादत्र वदि दसमी बुधवार, हस्तु नखतु दडन विस्तार । ता दिन मैं यह कथा विचारि, मीस्म पर्व सौ अहै हरसारी । वरनत कवि यो पदवा कहा, राजा दुयोधन तह रहा ।
कहु के खाउ लगे धर टूटा, कहु के सगी हिए मो फुटा । कहु के नान दुटिगे पार, कहु के सीसा गुरीदा का घाडो । कहु के कटि गार प्रश्रा डंडा, कोऊ मारी कीन्ह सतखंडा ।
अपूर्ण-गुटकाकार-प्रति ४४, पं० १३ से १६, अ० १० से १३ आकार
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[स्थान-अनूप संस्कृत पुस्तकालय ]