Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
View full book text
________________
समान है । ते गुण कौन कौन - सतगुण, रजगुण, तमगुण, ता माया विसै समि है तीन गुण तातें स्योम माया कहिये ।
अन्त
अमरं करं अचलं श्रकल्पं अचलं श्रारोग्यं श्रगाहं अकाटं मनो वाचा गोचरं । इति असी पद निर्णय | स्यामवेद वचन प्रमाणं। श्री गुरु सिख सौं । इति श्री चिदात्मराम विरचितायां त्रिपद वेदांत निर्णय संपूर्ण । लेखनकाल - संवत् १८२५ भादवा सुदि ९४ रविवारे लिखितं । प्रति-गुटकाकार | पत्र ३३ से ५० ।
[ स्थान- स्वामी नरोत्तमदासजी का संग्रह ]
आदि
अन्त
( ५६ )
८ ) पट शास्त्र |
आदि
परमातम को करो प्रणाम । जाकी महिमा है सब ठाम । प्यार वेद षट शास्त्र भये । अपनी महिमामें निर्भये ॥
योम नहीं नर कोम वत, परम हंस सब ठौर । अन्दर बाहर अस परे, बली नहीं कोइ और || लेखनकाल- संवत् १७८०
[ स्थान- सुराणा लायब्ररी चूक ( बीकानेर ) ]
( ६ ) ज्ञान चौपई । पद्य--६७ |
गुरु गोविंद गौरीश कौं, गनपति गिरा मनाय |
करौं प्रनाम कर जोरि के, सबके लागौं पाय ॥ १ ॥
चौपई कोविद नाम करि स्थ्यौ खेल करि ज्ञान |
भ्रमै मूढ़ परि खेल में खेलै चतुर सुजान ॥ २ ॥ मन बुद्धि वित श्रहंकार, पासे डारि विचारि के ।
लखिस्यु पंथ पग धार, खेल जीति घरको चल ॥ ३ ॥