Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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गणी तत् शिष्य पं० ॥ श्री ॥ पंकीतिकुशलजी गणी तत् शिष्य मुनी गुलालकुशज स्व यांचनार्थ । श्री मान कूत्रा प्रामे श्री सु पार्श्वजिनः प्रशादात् ॥ प्रति परिचय-पत्र १६ साइज: x ४|| प्रति पृष्ठ पं० १२. पंक्ति ३६
[राजस्थान पुरातत्व मंदिर, जयपुर ] (७ ) नसियत नामा । रचयिता-अकबर पातसाह । धादि
अथ नसीयत नामा अकबर पातमाहा की लीखते।
अकबर पातसाह आपकि बातसाई भीतर दस्कर लग अमल लिखके मिजवा दिया सो लिखी। श्रवल सहजादा के नाम, दूसरा वजीरी का नाम, तीसरा अमीरु का नाम, चौथा जगीरदार का नाम, पाँचवां हाकम का नाम, छठा सायर का नाम, सातम कुटवाला के नाम, इस मुलर अवल सब कामसे सायब कु याद रखणा । अपना पराया बराबर जानके नि (इत ) साफ करणा।
मध्य
पूच्या जीनब मैं वृथा कौन ? कार भलाई कर सकै अरु ना करें । । पूछयाबुरा मैं भला कौन ? वह्या-अंधे मे काणा, चुगलखोर से घहरा भला, लेपटी में ममक, चोरी करण से भीख मांग स्वाना मना १० ।
अन्त
असा काम कीजै उसमे खधारी न होय, लोक हंस नहीं, पाँच आदमी कह सोमानीजै, ईज्जत मब की राचीज, मो अपनी है। किमका मान भंग करणा नहीं, भोजन आदर विना जिमना नहीं । आपणो द्रव्य बेटा कुदिखावणों नहीं। इन्व देखावै तौ बेटा मम्त हुय जावै, अपनो हुनर सीखे नहीं, द्रव्य देख नजर ऊँची रखै, कुसंगत मीग्व जावै जिस वा..... .. ......
प्रति-पत्र-११ । पंक्ति-११ । अक्षर-१७ । साइज-६॥४४॥ विशेष १-अन्त का पत्र प्राप्त न होने से प्रन्थ असमाप्त रह गया है।
इसमें नीति एवं शिक्षा सम्बन्धी बड़े महत्व की बातें हैं।