Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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( १६८)
घोर दिवारी हरि मिले, मारो मेष पनाइ ।
परी मुख मोकौं दयौ, सारी पीर गंवाइ ॥ ३७॥ इति भी कवि मान कृत बारहमासी संपूर्ण प्रति-गुटकाकार न० ७६ । पत्र ४७ से ५० । पंक्ति-१६ अक्षर-२२ साईज
६||४|| विशेष-इम प्रति में सुंदर शृंगार, विहारी सतसई टीकादि भी है।
[अनूप संस्कृत पुस्तकालय] (१५) बारह मासा। आदि
रख्यौ मास द्वादस पिया, पिय अपनी निज देश । नयी नयौ वरनन कियौ, दीयो न चलत विदेश ॥ १ ॥
ऊरत गुलाल अति उहत अबीर मय, बित सौ लगाइ रहत प्रकास यौ । छूत है जल पिचकारनि ते चिहुं ओर जानु घनघोर वरषत ज्यू ॥ 'फागुण मैं ऐसे पिय फागु राग गाईगत, रूप कहे रसही मैं रस बस होइ त्यू । मोरी जान मो भरमावत हो जोरी वात होरी आये श्रही पिए क्यों करि चलयो ॥ १२ ॥ इति बारह मासा सम्पूर्ण ।
लेखन काल-सवत् १७५० वर्षे श्रावण वदि १३ दिने बीकानेर मध्ये मथने पेमू लिखतं तत्पपुत्र मैहपाल तत्पुत्र अखेराज ।
[वृहत ज्ञान भण्डार] (१६) बारहमासी । बालदास
अथ बारैमासी लिख्यतेश्रादि
मोहना बंसी बाजे कृष्ण, तेरी प्रवास सुण कर दोषी । रमझम रमझम मेहा बरसै, तट जमना पर लगी झड़ी ॥१॥
जेठ मास में तपै देवता, पंचागन तपस्या कीनी । साबरी सूस्त मोहे दरसन दीनो, बालदाम उर कठ कीनी ।