Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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(२७ )
१६७
और
पृ० पं० अशुद्ध ११७ हान भानि
सनमानि वियरुष भवित्त किय, रुकमति
करें। १६७ कल कहड़
कलप दड
चौर १६७ ११ से वे
सेइवें बौहरि
बौहरि १९८४ रस्थत
रख्यत १६८ १३ अरु मरु १६८ १७ पायन
पापन १६४ वीर
वीर रस १६६ १५ केंदरी
केंदरी व्रजराजन् जा
ब्रजराजन कुंजा २६६२४ आगे
रचयिात-प्रवीनदास रचयिता-प्रवीनदास सं० १८५३
सं० १८५३ जेठ पदि १२ महाराजा मानसिंह के लिये २०० ८ मनोरथ विकत मनोरथ ने विकल २०० इसी अवस्था सरन दसी अवस्था मरन है, नाम कछुन
है तामैं कछु नकसाद सवाद २००
१० करनि कमायो परणि सुनायो २०० ११ थूप
भूप ।। ७७॥ १२ मह रने हात जानी ग्रह दूने सात जानी २००१३ द्वादसी
द्वादसी। २०० १६ कवि गुलाब
कवि गुलाबखा २०१३ मारे २०१६ बाबुबह बास नई श्राखु बरु भासन है
१६६
२००