Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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( १२१)
युगला धरम नित्रामा मामी निरखा जइते साल दिनं ॥१॥ उपसम म मागर नित नागर र कर पातग मलिनं ।। श्रीनिन रतन गरि मधुकर जिम, रमिक सदा प्रपद नलिनं ॥ २ ॥
अंत
गम बन्गामा:चरवी जिनवर ने गाव विकग्गा शुद्र तिके मत्रि प्राणी. मन यंत्रित पुग्न पावह ॥ १ ॥ श्री जिनराज सूरि वनगर मह गुरु नइ सुप सावद । गति दिवस तुझ गण समस जर एह मात्र मन भाव ।। * जिन रतन प्रमती सानिध, दिन २ यधिक दरबद ।
श्रारनि बद ध्यान दुद परिहरि, धर्म ध्यान नित यावा ।। २ ।। इति बरामी प्राते- ३ प्रांत यां, पत्र १-२-६ जिनमें १ मं. १७१६ मोमनंदन लि.
[अभय जैन ग्रंथालय ) (११ ) चौबीशीपद-कोटारी मगनलाल कृत आदि
रू मत्र ऋषभदेव प्रथम ज़िगांदा । अंत
तोम नव उगनीम संवत, वर्गाच्या प्रभु निर्मला । मगन जिनवर जाप जपता, शुभ दिशा चड़नी कला ॥ ५ ॥
दोहा चौबीसी जिन गुण वरणी, निज बुधि के अनुसार । मगनलाल ने दी लखि, मक्तन के सुखकार ॥ १ ॥ जयपुर राजस्थान में, विदित कार्य के काज । रवे गग पद सुगम करि, सब सुख के हैं साज ॥ २ ॥ तुफीद खलायक मंत्र है, सहद अकबदा बाद । अधकारी मृसी तहो, महावीर परसाद ॥ ३ ॥