Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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अब श्रीवैराग्य शतक के विष वतीय प्रकाश पखान्यौ तो अब अनंतरि पोषा प्रकाश गुवालेरी भाषा करि वखानता हूं । प्रथम शास्त्रीक पदाषा बोडि करि या अपनश भाखा वीचि असा पन्थ की टीका करणी परी सु कौन बासला ताका भेद बतावता है जु उर भाखा बट है ताका नाम कहता है-संस्कृतं प्राकृतं चैव मागधं शौरिसैनक, पैशाचिकं चापंभ्रंशं च षट सु माथं प्रकीर्तितं १ यह घट देश की घट भाषा है सु शास्त्र निबद्ध है सुतौ व्याकरणादि काध्य कोष पढे हौवं नाकी प्रबोधज्ञान होवह परं अल्प परिचर्य नूतन वेषधारी तिसकी वे भाषा षट कठिन हौवै ता भगति लोक रामजन मुहित बैरागी तिन्हूं के प्रबोध के वास्ते उन्हीं यह ग्रंथ बंधायौ ताथै उन्हीं के उपगार के वाम्नै यह श्री भतृहरि नामा शास्त्र दूजा शतक वैराग्यनामा तिमकी टीका सर्वार्थ सिद्धि मणिमाला तिसको चोथौ प्रकाश वग्वाणता हु नत्रादिम काव्यं ॥ छः ॥ प्राणाघातत्यादि अब कविजन कहता है श्रयमामेवपंथा श्रेय कहावे मोक्ष कल्याण विणको यौही पंथ ई-गोही कौण मौई यनावता है
अन्त
वैराग्य शतकं नाम प्रथं विश्वमहोत्तमं सटीक सार्थक पूर्णकृतं जैनाश्विना शुभं ५ इति श्री वैराग्य शतकं शास्त्रं ॥ महावैराग्य कारणं सुभाष सुगमं धक श्री समुद्राद्यतसूरिया ॥ ६ ।। श्री मत्सर्वार्थसिम्याः मशिनजि मतिनारन्नकानिधृ. तानि । नाना शास्त्रागरेभ्यः श्रत प्रत विधिना । मध्यतानि स्थितानि । प्रोद्यश्री वेगडाख्यगगन दिनमणिना गणीनां मु शिष्यः शिष्यानामर्थ मिध्ये। जिन दधि रविभिः । शोधनीयानिविद्भिः ।। ७ ।।
शीघ्र गत्या यथा पत्री लिख्यत भाष्य मौमया लिखिता शतक टीकाच शौथ्याविद्भिः मतां गुणैः ॥ ८ ॥
वैराग्य शतकाव्यस्य टीकायां श्रीसमुद्रभिः मार्थ सिद्ध मालायां प्रकाश मुरीयो मतः ॥६॥
इति श्री श्वेतांबरसूरि शिरोमणिनां परमाव्यहच्छासन गगनां दिनमणि भट्टारक श्रीजिनेश्वरसूरि सूरीणां पट्टे युग प्रधान पूज्य परम पूज्य परमदेव श्री जिनचन्द्रसूरीश्वराणां शिष्येण भट्टारक श्री जिनसमुद्रसूरिणा विरचितायां