Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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आदि
श्रन्त
( १५२ )
[ बृहत् ज्ञान भंडार ] (४७) भावना विलास । पद्य - ५२ । रचयिता लक्ष्मीवल्लभ । रचनाकाल- संवत १७२७, पोष दशमी ।
इहे ग्यान की बात है, दुरी पार बाथ |
में जुहा परगट करी, सो छवियो अपराध ॥ १०३ ॥
प्रति- पत्र ४, पंक्ति १४, अक्षर ४८ ।
चूरा है पूरण है आस के ।
प्रथम चरण युग पास जिनराज जू के, विश्व के एट दिल मांझि ध्यान धरि श्रुत देवता को, सेवत शान हग दाता गुरु वढी उपगारी मेरे, दिनकर जैसे दीये ज्ञान प्रकास के ।
संपूरन हो मनोरथ दास 1
इनके प्रसाद कविराज सदा सुख काज, सवीये वनावति मावना विलास के ॥ * ॥
आदि
द्वीप युगल मुनि शशि वरसि, जा दिन जन्मे पास 1
विरुद्ध ॥ ५२ ॥
ता दिन कीनी राज कवि, यह भावना विलास ॥ ५१ ॥ यह नीके के जानिये, पढ़िये भाषा शुद्ध 1 सुख संतोष श्रति संपजै, बुद्धि न होह इति श्री उपाध्याय लक्ष्मीवल्लभ गणि कृत लेखनकाल- संवत् १७४१ आसोज १४ नापासर मध्ये | श्री स्तु ॥
प्रति- पत्र ७ से १०, पं० १७ से १८ । अक्षर- ५७ साइज १०x४।
विशेष - जैन धर्म की वैराग्योत्पादक अनित्य, अशरणादि १२ प्रकार की
भावनाओं का इसमें सुन्दर वर्णन है ।
भावना विलाम सपूर्णं । लिखितं हर्ष समुद्र मुनि
[ अभय जैन ग्रंथालय ] (४८) भाषा कल्प सूत्र । रचयिता- रायचन्द । रचना काल - सम्वत्१८३८, चैत सुदी ६ मंगलवार, बनारस ।
अथ श्री भाषा कल्प सूत्र लिख्यते ।