Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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(४) रामायण । रचयिता-चंद । पद्य-दोहा ५६, छप्पय १, झूलना १, सबैया १०१ । लेखन काल १८ वीं शताब्दी । मादि
गुरु गणेस अरु सारदा, समरे हीत अानंद । कछु हकीकत राम की, अरज करत है चंद ॥१॥ श्रादि अनादि जुगादि है, जाहि जपे सम.कोड । रामचरित्र अद्भुत कथा, सुनौ पुन्य फल होइ ॥ २ ॥
पारस न चाहुं पर जीते कोन न धाउ अनदेव कोन धावत कहत हौ सुमाव की । बाहु न कुमेर को सुमेर सोनों दान देह कामना न करो कामधेनु के उपावन की । चाहु ना रमाइन जोता मैं तो सोना होई, रावत न तमा नेक अन्य के सहान को । जाच के काज हाथ श्रोझता सकल दिसि चंद जीय चाहता हो किपा सुनाथ की ॥ १५ ॥ इति श्रीरामायण चन्द्र क्रित संपूर्ण । प्रति- पत्र २४ । पंक्ति १० । अक्षर ३३ । आकार ८४४॥
[स्थान- जिनचरित्रसूरि संग्रह ] (५) रावण मंदोदरी संवाद । रचयिता- राज ( जिनराजसूरि ) ।
रचनाकाल- १७ वीं शताब्दी। भादि
राग-जइतसिरी अाज पर सोचत रमणि गई। नायक निपुण धमई काजि काहे आणि ठई ॥१॥ मेरह कहिइ विलगि जिन मानउ, हइविल बेलिवई । विरारह काम कह उगे मोकुं, किनहुं न खबरि दई ॥२॥ मणीयत हा गद लंक लयंण क', होवत राम तई । न कहत बरत राजिस बोऊ, कनक न बात मई ॥ ३॥या
इति मंदोदरी वाक्य । राग-सामेरी। 'पोरवाई।