Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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( २२७)
कामिण जात की सोनार, घइसी का न देखी नार । ताकी सयल सोमा सार, कहतां को न पावइ पार ॥ महिमासमुद्र मुनि इल्लोल, कीधा कछु कवि कल्लोल । पुणकद सुख पावइ छयल, ही हो हसह मूरिख बयल ॥ ४० ॥ सुरता लहइ श्रइशो भेद, विप्र जामह वेद । मोती लाल विणसा, जापाई कोण किम तिसा ॥ इसकी यह है तारीफ, जडिसा नेह हरीफ हरीफ ।
महिमासमुद्र कह विचार, सुणतां सदा सुख प्यार ॥ ४२ ॥ इति गजल संपूर्ण
गुटका-लोका गछ उपासरा जैसलमेर प्रतिलिपि-सादृल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्य ट
(३) बीकानेर गजल । पद्य १६१, लालचंद, सं० जेठसुदि ७ रविवार । श्रादिप्रारम्भ के तीन पत्र नहीं मिलने से ६०, पद्य नहीं मिले ।
मध्य
" तु दाला क छैला छत्र छोगाला क ॥६॥ सखरे हाट बैठे साह............... मोती किलंगी मालाक, वागे जरकसी वालाक । लाग्बू हुडिया ल्यावे क, जनसा माल लेजावे क ॥६२॥
अन्त
बीमा सहर है बहुते क, ऐसी नाम है केते क । ईश्वर संभु का अवतार, पुष्कर कपिल है निरधार ॥१८॥
संमत अटार अडतीस में, बीकानेर मझार । जेठ मुकल सम दिने, साचो सूरजवार ॥१६॥ लालचंद की लील सू, कही खेत पर हेत । पटै गुणे जे प्रेम घर, जे पामै लष जैत ॥१६॥