Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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धादि अंत मध्य भंग जाको नहीं पाइयो । संघण संद्राण जाण नहि कोई अनुमान, ताही कुं करत ध्यान शिवपुर जाइए । मणे मुनि बालचंद, मुसोहो मविक वृक्ष अजर श्रमर पद परमेश्वर कुं भ्याइऐ ॥ ५ ॥
महामंद सुखद रूप मंद जाति । श्रीया रूप जीव गणि कुंवर श्री मलिल पनि रतनमी जम धणि त्रिभुवन मानी ई विमल शासनजास. मुनिश्रीय गंगदाम
रन दीक्षित तास बत्रीमी सम्माणि ये । वाण वस रमचंद दीवाली मगान वद
श्रहम्मदाबाद दंग, रंग मन प्राधिये ॥ ३३ ।। अनि श्री बालाचंद मुनिकृत बाग्मी मयुगा ! म० परनापसागर पठन कृत ।। १ ।। म० १८५६ लि. कोटई। पति-पत्र में १० । पं. १३ । अ. ४५ ।
[ समय जैन ग्रंथालय (१४) राममीता द्वात्रिंशिका । रचयिना- जगन पुहकरगा श्रादिमरसति मभर सरिम बुधि दीजें मोहि, न पाय गणपति गुगाह गंभीर के ।
चित हुइ के गरु छल्ल कुं प्रणाम करू, जाके गुण अहसे जइसे गुण दधि वीरके । जेने कवि कलिमइ कल्लोल करै कविता के, वचन रचन र पवित्र गंग नीरके । तिनके प्रसाद कीने जगन मगत देन, सबाये छत्रीस राना राम रघुबीर के ॥ १ ॥
सणिये अ श्रति पारि तरिय दधि संसार, जाइये त जम लोक जम्म ते न डरना । मील न पाईयत नरक न पाईयत, अनम पवित्र होत पाप में न परना ।