Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
View full book text
________________
Purus".
अशुद्ध ३ जाल
चटरतर
गनपति हिय नारं १२ पाऊं, गणि १६१७ संवत' . . . ' 'मुद्रक्षा
८ २
जंजाल बरतर गनपतिहि मनाउं. गाऊ उमगि मंवत सिखि शशि निधि, माघ माम तम पक्ष । पंचभी गुरु वासर विमल, समझो वृन्द सुरक्ष करहला गाइयो
३.
१५
करबलां जाइये
YW "
A.U0"
२० २१ ३. अंतिम हाद विचारे दारद विदारे पदा
बंध (बद्ध) २३ दिप आदि नहीं थे तो
कहि जुग नाम उधारा कलिजुग नाम अधारा हमरो भव उतारो मुमरो भव उतरो
(घ) संत साहित्य ३४ २८ दिलावर
दिसावर अंतिम छंद
अंग हन्दव छन्द
मनहर छंद विश्न पद
विमा पद भजण
भंजा जुरा २७ अंतिम निसकार
निराकार सुनजी निरंजन सुन जो मून भाई सुन जो बाप,
सुन्न निरंजन २६
पुहासरि लागि पुहासिम धार जलि
लागि गया लागिया धूवा ३६ घड़िका ।
धड़िका पंथ' 'चाले जाई। पंथ द्यले चपवना तूट, तनताली
जैतन जाइ।
३