Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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(२) कृष्ण लीलाआदि-प्रथम पत्र नहीं है।
अष्टोत्तर शतपद नेमनीया निस दिन मुख थाके रोजी । राधा गोपी गिरधर संगे, क्रीडा अनुदिन हे रोजो । दासी सुन्दर जब न बिगरी, प्रेम हरखि सुख गाएजी ।
ध्यान पियारो सुन्दर बनोगी जोडो । प्रति-पत्र २ से १२, पं० १५, अ० १२, साइज ७४५
( ३ ) कृष्ण विलास । पद्य ३६ । रचयिता-मु० साहिब सिंध । रचनाकाल संवत्-१८०८, मगसर सुदी ३ रवि० ( मरोठा ) पादि
कृष्ण पधारौ कृपा कर, पाणंद भये अपार । काम पग माडकर, निरख रूक्मणी नार || १ ॥
मोटो कोट मरोट को, जूनौ तीरथ जान । साहिब सिंध सुखसौं वसै, मजन करे भगवान् ॥ ३५ ॥ श्राठार सै अठौतरै, मगसर सुद रविवार ।
तिथ तृतीया सुभ दिवस ., कृष्ण बिलास बतार ॥ ३६ ॥ इति कृष्ण विलास मु० साहिब सिंध कृत संपूर्णम् ।।
लेखन काल-संवत् १८४८ वैसाख सुद् ४ सनि । नोखा मध्ये । प्रति-पत्र ४ । राम विलास के साथ लिखिता।
[ स्थान-बृहद् ज्ञान भाण्डार ] ( ४ ) गोपीकृष्ण चरित्र (बारहखडी)। पद्य ३७, रचयिता-संतदास । लेखनकाल-संवत् १६१७
पादि
कका कमल नैन जबतें गये, तब ते चित नहिं चैन । व्याकुल जलबिन्दु मीन यो, पल नहीं लागत नैन ॥ १ ॥