Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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रूप निरूपम जल सुवासित बनन परम रसार || ॥वे ! नवल झलकत कांति मनुहर, देव के अवतार ॥ विलमि संपद लहई आनंद, मगति के सुख मार ||३|०४४॥
इति कल्यागा मंदिर स्तोत्रम्य ध्र पदानि । लेखनकाल-संयत् १७१०
[ स्थान-प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय] ( ४ ) कुशल विलास । पग-७८ । रचयिता-कुशल । प्रादि
अथ कुशल विलास लिख्यते राजा पर जा जे नर नारि, बाला तरुणा बूढ़ा । श्राला सूका सरव जलेंगे, ज्यू जंगल का कूड़ा। पर घर छोड माड घर घर का घर में कर घर वासा । पर घर में के घर पर है, घर घर में मेवासा ॥ १ ॥
अन्त
धाम विवेफ विना गुरु संगति, फिर फिर वो चौरासी । कुमल कहे चेत सगाने, फिर पीछे पीये पितासी ॥७॥ मुरणे मग वांचे पढ़े, मूल मरम को नास । ।
नाम धयां या ग्रन्थ को, कुमल विवेक विलाम ||८|| लेखनकाल-संवत १८३३, माह वदि १२, रवि वासरे-तत् शिष्य मुनि अभयसागर लिपि कृतं श्री अहिपुर पदण नगरे । प्रति-पत्र ६ । पंक्ति १३ । अक्षर ४०। साइज-१०॥ ४५
[ स्थान-अभय जैन पुस्तकालय ] ( ५ ) कुशल सतसई । रचयिता-कुशलचंद्रजी । पादि
नमन करू महावीर को, जग जन तारण हार । कुशल गुरु कुशलेहु को, देहु सुमति सुविचार ॥१॥