Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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भावी त्रिस्त बप्पर बस्न, मौ मौ हरनी सकस भय । जगदेव पावि पानी असू, जै जग परनी मात जय ॥ ३ ॥
दोहा अय जग धरनी भात जय, दीजै पति अपार । करि प्रनाम प्रारम्भ करों, राजनीति विस्तार ॥ ३ ॥ जिन वषतन में पातमा, राजत पालमगीर । निन मखतन पैदा कियो, गुन गुनीयन गंमीर ॥ ४ ॥ मौलंकी जगमाल मृत, उदयासंघ अनेक । गुन दीनो तातें गुनी, बायो ग्रंथ विमेक ॥ ५ ॥ जैसे बेद बिरंचिको, अपरम दीये उपाय ।। गजनीति राजान क, से दर्द मनाय ॥६॥
छप्पय
प्रथम अंग भूषाल, राजरानी अंग दजै । तीजे राजकुमार, मंत्रि चोथे गनि लीजै ।। पंचमु साहिब अंग, अंग षट राउत मान । सातू रहित यत धंग, कवी अठ अंग बषान् ॥ जग जीत रीत जाने जगत विविध विवेक विचार का । जे करत सदा समरन जसू पाठ अंग परने म यह ॥ - ॥
पन्त
दहा
पदिय ते मालिम परत पानीति अनीति । जसूराम चारन कही, राजनीत की रीत ॥ २६ ॥ संवत नाम पठारसे, बरष चऊदन माह ।
बासौ मुदि नवमी युकर, गुन बरन्यौ चित चाहि ॥३०॥ इति भी जसूराम कवि विरचिता, राजनीति सम्पूर्ण
सम्बत् १८८१ ना वर्षे माधव मासे कृष्ण पक्षे त्रियोदशी तिथी रविवासरे संपूर्ण निखितं सकल पंभित शिरोमणी पंडितोचम पं० श्री १०८ श्री पं० शानशाजी