Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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विशेष-श्रारम्भ के 5-6 पद्य आदिनाथ के, फिर नवकार, १२ भावना पार्श्वनाथ के मवैये हैं। पद्यांक १७ में ६८ में २४ तीर्थंकरों के एक २ सवैये हैं।
[स्थान-अभय जैन ग्रन्थालय ] ( ७ ) चौवीश जिनपद भादि
नासिरायः कुल बद, मरुदेवी केरे नंद । अधिक दीठ श्रागद, टारइ भव फेरउ । निरमल गांगनौर, सोवन बन्न सरीर । मेवनां संसार तार, जाकई इंद्र चेग्उ ॥ नयरंग कहा लोइ, गाउ २ महु कोड । त्रिभुवन नीको जोइ, नाही हा अनेरउ । मंत्र सेव श्रादिनाथ, सिवपुर फेरउ साथ ।
सुरतरु जाके हाथ, सोहन नवेरउ ॥१॥ प्रति-पत्र २ अपूग, पद ३२ पूर. ३३ वां अधृग रह जाता है। ले-१७ वी तिम्वित ।
[अभयजैन ग्रंथालय ] ( ८ ) चौबीस जिन सवैया धरममी श्रादि
ग्रादि ही को तीर्थ कर श्रादि ही को मिक्षाचा । श्रादि गय आदि जिन च्यारौं नाम आदि श्रादि ॥ पाचमा रिषभनांम पुरै सब इछा काम । काम धेनु काम कुभ को नो सब मादि मादि । मन सौ मिथ्यात मेटि भाव सौ जिणंद मेटि । पावौज्यु अनंत सुख जावोगुण वादि वादि ॥ साची धर्म सीख धारि आदि ही कुं सेवो यार । प्रादि की दहाई भाई जो न बोलै श्रादि श्रादि ॥ १ ॥
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साधु भाव दस ध्यारि हजार, हजार छतीस सु साध्वी बंदी। गुणमटि सहस्स सिरै लख धावक श्रावकाची दुगुणी दुति चंदी।