Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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( १७४ }
पंत
श्रादि बुधि की होन हो दुर्जतन धरिजाय । लीजै बाखत हीन हो चौथे रोजी भरि ॥
इतने लखन पापके होवे बार बार । ..लिखा है अरजुन जो मनस इन तीन पाठन कू अपने चित्त सू कभी नियारी नहीं करें तो इस लोक पार पर लेया मैं परम सुख पावै प्रथम सुख पावे. प्रथम स्वामी की सेवा मे हंसमुख और निरलोभ रहै दूजे चाकर के मनकू दुखी नाखे। तीजो किरोध न करे।
इति श्री ज्ञानमाला संपूरणम । प्रति पत्र २ से ६५ पं० १२ अ०१४ साइज ६.४८
[स्थान-अनूप संस्कृत पुस्तकालय ]
च.निति चाणक्य भाखा टीका।
अब चाणक्य माखा टीका लिख्यते ॥ आदि
दोहा
सुमति बढ़ावन सरब जन, पावन नीति प्रकास । माखा लघु चानक मलें, मनत मावनादास ॥ १ ॥ संकर देव प्रनाम करि, विधिपद वंदन ठानि । विष्णु चरन जुन सीस धरि, कई चि शास्त्र बखोनि ॥२॥ कयौ प्रथम चाणक्यमुनि, शास्त्र सुनीति समाज । सोइ अब मैं धरनू नरन, बुद्धि भटावन काज ॥ ३ ॥
कहियत चानक संस्कृत, निरमल नीति निवास । भाखा करि दोहा मनै, साधु मावनादास ॥ २० ॥ षोडश चानक के कहिये, पोहा व सततीस । सुभग स्वरग सोपान सम, प्रतिमुद प्रद अवनीस ॥२१॥