Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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( २ ) आत्म विचार-माणक बोध आदि
अथ माणक बोध लिख्यते मंगला एने करुणायतन सर्व कल्याणगु धाम ।
मन मानस सरहंस वतरग ! म ! ण करहु सियाराम ॥ ध्यान पूर्वक इष्ट देवता की प्रार्थना करे है
सवैया स्याम शरीर पीताम्बर सोहत दामनी जनौधन माहि सुहाई । सौस मुकट अति सोहत है धन उपर क्यों रवि देत दिखाई । कंठि माहि मणि मलवनी मानु नीलगिरि मांहि गंगजु भाई । मायक मन मोहि असो ऐसो नंद के नंदन फल कनाई ॥
टीका श्याम शरीर के धन की उपमा, फुरकता पीताम्बर कू दामनी की उपमासीस कूधनकी उपमा, मणि जटत मुकुट कू रवि की उपमा, कंठ रूप सिखर मू लेकरि वक्षः स्थल ऊपर प्रपति भई जो मोतियन की माला तांकू गंगाकी उपमा, वक्षः स्थल कू नीलगिरी की उपमा ।
अथ गग
ज्ञानवान के बाहुल करिके बहोत हो तो अहं तदि भ्रमको उदे नहिं होत है, क्योंकि उनके सदा ही स्वरूपानुमंधान को दृष्ट उपाय है अरु बाह्य प्रवृत्ति के उपराम है। अतः भ्रम है, ताने भ्रम को घणो सो अवकाश नाहि ।
अन्त
यमुना तट केलि करे विहरे संग बाल गोपाल बने बल भईया । गावत हैंक कवि वंसी बजावत धावत हैं कबहु संग गईया ॥ कोकिल मोर कीन नाइवे बोलत कूदत है कपि मृग की नईया ।
माणक के मन बहिन सो एसो नंद के नंद यशोदा के कई या ॥ इति आत्मविचार प्रन्थ मोक्षहेतु संपूरण समाप्तम् ।