Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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प्रति- पुस्तकाकार | पत्र ३५ से ४८ । पंक्ति २६ से ४० । अक्षर ३० से ४० साइज ७ ११
[ स्थान- अभय जैन ग्रंथालय ]
( २ ) कल्याण मंदिर टीका ( गद्य ) । रचयिता - आम्बेराज श्रीमाल |
आदि
अन्त
राज्ये ।
( ११६ )
अन्त
परम ज्योति परमातमा, परम
बंदौ परमानंद-मय, घट घट
गग-सारंग
जान परवीन |
अन्तर लीन |
यह कल्याण मंदिर की टीका, पढ़त सुनत सुख होई |
आखैराज श्रीमाल ने, करी यथा मति जोह ४५ ।
लेखन काल - संवत १७६६ म० सु० ६ गु०लि० अकबराबादे बहादुरसाह
प्रति- पत्र २५ । पंक्ति- ११ । अक्षर-३३ ।
( ३ ) कल्याण मंदिर धुपदानि । रचयिता - आनंद |
आदि
[ स्थान-सेठिया जैन ग्रंथालय ]
दृहा
आनंद वदत कृपा करहु, श्री जिनवर की वानि
शुभ मंदिर के रचहुं पद, काव्य रथ परमानि ॥ १ ॥
चरणांबुज श्री जिनराज के प्रणमुंहुं सकल मंगलके,
मंदिर अतिहि उदार कया जिके । च० ।
afta faarti Ha भय तारण, प्रसंसित सकल समाज के ।
मव जल निधि से बुडत जगत को, तारण विरूद्ध जिहाजके ॥ २ ॥
वे नर रसिक चतुर उदार ।
पास जिनवर दास तेरे, जगत के शिरवार || १ || वे |