Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
View full book text
________________
( ३७ ) नेमिनाथ चंदाहण गीत ।
धादि
गग-केदारा जुडी-दूर उ मामल वरया सोहामणु, सब गुण तरणु मंधार ।।
मुगति मनोहर मानिनी तिन को हा भरतार ॥२॥ चालि-मुगति रमनि तु मरथारा तुझ गण कोइ न पावइ पारा
तीन भुवन कु प्राधारा, अभयदान कुहइ दातारा ॥२॥ बहा वारि नइ धुरि जानु तेरी दुलतह महीबखानु । अधयार हर६ जिनु मानु. तेज अनंत तुम्हारा जानु ॥३॥
अन्त
नेमि वदायण जे भणय रे त पाबड सुमार । मुनि भाऊ हम वानवइ छोरर भव के पार ॥४६॥
(३८) पद ६६ । ग्य ता - रूपचनः । पद - चेतन चति चतुर सुजान ।
कहा रंग रच रह्यौ पर सी, प्रीति करि यति वान ॥ १ ॥ तु महंतु त्रिलोक पति जिय, जान गुन परधान । यह चेतन हीन पुदगलु, नाहिं न तोहि समान |॥ २ ॥१०॥ होय रयो श्रममन्यु श्राप नु, पर कियो पजवान । निज सहज मुख छोडि परवक्ष, परयौ है किहि जान ॥३॥०॥ रह्यो मोहि जु मूद याम, कहाँ जाषि गुमान । रूपचन्द चिरा चेति परु, अक्लौ न होइ निदान ॥४॥०॥
लेखनकाल-१७ वीं शताब्दी । प्रनि-गटकाकार-फुटकर पत्र । माइज-४|४३ विशेष-कई पद भक्ति के हैं, कई अध्यात्मिक कई निर्मायक भी हैं।
[अभय जैन ग्रंथालय ]