Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
View full book text
________________
अन्त
वन जात्रा परिक्रमा श्रीगुसांईजी करी । सो श्री गोकुलनाथजी अपने सेवकन सों कहते हैं । जो वैष्णव होन ब्रज की परिक्रमा करें तब ब्रज को सरूप जान्यौ परे ।
श्रादि
अन्त
( ३१ )
प्रति-गुटकाकार | पत्र २२ । पंक्ति १७ । अक्षर १८ । आकार ८४६ । विशेष- श्रादि अन्त नहीं है ।
[ स्थान - अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर ]
( १२ ) श्याम लीला
आदि
रागु मलार (टेक)
गोकलानाथा गोविननाथा खेलत ऋजु की खोली । जब गोकुल गोपाल जन्म भयो कंस काल में बीत्यो । बहुविध करत उपाय हरनकू बल बल जानु न जीत्यो ।
जो या कथा सुनै अरू गावै, है पुनीत बडभागी । दासु कल्यान रयन दिन गावै, गुन गोपाल तियागी । इति श्याम तीला समाप्ता । पत्र ७२ से ८६ ।
[ स्थान- अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर ]
(१३) सुदामा चरित्र
श्रथ सुदामा चरित्र सवईया इकतीसा लिख्यते । माधू जू के गुन गाई गाह गाइ सुखपार |
और न सुनाइ सेष महिमा न जानौ सुक ता कहने को कहा मानस जैसी मति मेरी कथा सुनी है पुरान मति जिहि मांति सुदामा जू द्वारिका सिधारे हैं । तंदुल ले चलै कैसे हरि जूं तू मिलें पुनि कैसे फेर पाए निज हारद विचारे हैं ।
नाग हू से
नारद श्री
हारे हैं ।
बालमीक |
विचारे है ।