Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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ले० संघात् १६१३ कातिक सुदी १३ सोमवार । लिखितं रविदिन जैसलमेर मध्येइति श्री शुकनावली सतीदास पंडितकृत संपूर्णम् । लिपिकृता सांज समये राव रणजीतसिंघ रा० प्रति-पत्र ११, पं०१३, अ०४०,
[ स्थान- मोतीचंद्रजी खजानची संग्रह ] (१०) संस्कृत ग्रन्थों की भाषा टीका लघुम्तवन भाषा टीका- रचयिता-रूपचंद्र सं० १७६८ माघ वदी २ सोमवार
श्रादि
जाकी सगति प्रभावत, भयौ विश्व सु विकास ।
सोई पदारथ चित धरौं, ध्यान लीन है तास ॥ १ ॥ गदाटीका-"जो त्रिपुरा भगवती 'ऐन्द्रस्येव, शरासनस्य' कहतें-इन्द्र है म्वामी जाको एसो शरासन कहते धनुष । इतने वर्षाऋतु को धनुष, ताकी जो प्रभा कहते ज्यानि तरको “मध्ये ललाटं दधति' कहत ललारमध्य विष धारतो है, इतने इन्द्रधनुपकीसी पांचवर्णी ज्योति मेरे दोनों भौहां विधि धरि रही है। ए तात्पर्य या पद मे एकार बीज कह्यौ ।”
सतरै सै अट्टाणुल्य मात्र कृष्ण पक्ष बीज । सोमबार ए वचका पूम लिखी स बीज ॥ गच्छ खरतर कुशलेमके, दयासिंध के सीस ।
रूपचंद कीन्हें सुगम, स्तोत्र काव्य इकईस. ॥ लि-संवत १९५५ मीगसर शुक्ल पख्य पूर्णिमा १५ बुद्धिवारेण श्री बीकानेर मध्ये । लिखी पं० वासदेव कमला गछे लिखितं लघुस्तोत्रम्-श्रीरस्तु
प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय विशेष-पृथ्वीधराचार्य रचित सुप्रसिद्ध त्रिपुरास्तोत्रकी भाषाटीका है।